कोरोना के बढ़ते प्रकोप के सामने चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। लोग ऑक्सीजन और दवाओं के लिए मारे मारे फिर रहे हैं। भविष्य में ऐसी स्थिति दुबारा ना पैदा हो इसके लिए सरकार और आम नागरिकों को सुझाव देते हुए किसी प्रतिष्ठित समाचार पत्र के संपादक को एक प्रार्थना पत्र लिखिए।
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यह अप्रत्याशित ही है कि दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को अस्पतालों में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति न होने के कारण आड़े हाथ लेना पड़ा। बेतहाशा दबाव में काम कर रहे दिल्ली के अस्पताल ऑक्सीजन की अतिरिक्त आपूर्ति की गुहार लगा रहे हैं, क्योंकि सैकड़ों लोग टूटती सांसों के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं और उनमें से अनेक लोग ऑक्सीजन की कमी के चलते दम तोड़ चुके हैं। भारत शायद ही कभी संताप, भय और पीड़ा से उपजे ऐसे दृश्यों का गवाह बना, जैसा कि पिछले कुछ दिनों में दिल्ली में नजर आया। अतीत में अदालत ने नागरिकों की पीड़ा को लेकर इतनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। उसके तीखे शब्दों ने हजारों बेबस मरीजों को आवाज दी, जिन्हें अन्यथा समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें राहत कैसे और कहां से मिलेगी।
लगता है कि हम किसी युद्ध के बीच में है। चिकित्सा व्यवस्था पर भारी दबाव है। डॉक्टर थक चुके हैं। और अब ऑक्सीजन, वैक्सीन तथा जीवनरक्षक दवाओं की कम आपूर्ति का संकट पैदा हो गया है। हम कोरोना की शुरुआत के बाद आज दुनिया में सर्वाधिक दैनिक संक्रमण के आंकड़े तक पहुंच चुके हैं। 20 अप्रैल को पूरे देश में पहली बार एक दिन में 3.14 लाख लोग संक्रमित पाए गए थे, जो दुनिया में सर्वाधिक था। कोर्ट के ये शब्द- 'सरकार हकीकत का सामना करने के लिए तैयार नहीं थी', 'वह सिर्फ समय जाया कर रही है', 'इसका मतलब है कि लोगों की जिंदगी सरकार के लिए मायने नहीं रखती', 'आपको उद्योगों की फिक्र है, जबकि लोग मर रहे हैं'-सरकार के लिए चेतावनी हैं कि उसे अब वह करना चाहिए, जिसके लिए उसे चुना गया है।