Computer Science, asked by shubhra65, 5 months ago

कार्निक कौन था और उसने धृतराष्ट्र पर किस बात का दबाव डाला​

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Answered by Ketangupta4155
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Answer:

 

यह सुनकर दुर्योधन बोला-“पिता जी, आपको

और कुछ नहीं करना है, सिर्फ़ पांडवों को

किसी न-किसी बहाने वारणावत के मेले में

अेज दीजिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ

इतनी सी बात से हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं

होगा।”

इस बीच अपने पिता पर और अधिक दबाव

डालने के इरादे से दुर्योधन ने कुछ कूटनीतिज्ञों

को अपने पक्ष में मिला लिया। वे बारी-बारी से

धृत्राष्ट्र के पास जाकर पांडवों के विरुद्ध उन्हे

उकसाने लगे। इनमें कर्णिक नाम का ब्राह्मण

मुख्य था, जो शकुनि का मंत्री था। उसने धृतरष्ट्

को राजनीतिक चालों का भेद बताते हुए अनेक

उदाहरणों एवं प्रमाणों से अपनी दलीलों की पुष्टि

ककी। अंत में बोला-“राजन! जो ऐस्वर्यवान है,

ही संसार में श्रेष्ठ माना जाता है। यह बात

ठीक है कि पांडब आपके भतीजे हैं, परंतु वे

बड़े शक्ति-संपन्त भी हैं। इस कारण अभी से

चौकन्ने हो जाइए। आप पांडु-पुत्रों से अपनी रक्षा

कर लीजिए, वरना पीछे पछताइएगा।”

कर्णिक की बातों पर धृतराष्ट्र विचार कर

रहे थे कि दुर्योधन ने आकर कहा-“पिता जी,

आप अगर किसी तरह पांडवों को समझाकर

ारणावत भ्रेज दें, तो नगर और राज्य पर हमारा

शासन पक्का हो जाएगा। फिर पांडव बड़ी खुशी

से लौट सकते हैं और हमें उनसे कोई खतरा

नहीं रहेगा।"

डुरबोधन और उसके साथी धृतराष्ट्र को रात-दिन

इसी तरह पांडवों के विरुद्ध कुछ-न-कुछ

कहते सुनाते रहते और उन पर अपना दबाव

डालते रहते थे। आखिर धृतराष्ट्र कमजोर पड़

गए और उनको लाचार होकर अपने बेटे की

सलाह मानती पड़ी। दुर्योधन के पृष्ठ-पोषकों ने

वारणावत की सुंदरता और खूबियों के बारे में

जांडवों को बहुत ललचावा। कहा कि वारणावत

में एक भारी मेला होनेवाला है, जिसकी शोभा

देखते ही बनेगी। उनकी बातें सुन-सुनकर खुद

'ंडवों को भी वारणावत जाने की उत्सुकता हुई,

हाँ तक कि उन्होंने स्वयं आकर धृतराष्ट्र से

वहाँ जाने की अनुमति माँगी।

धृत्राष्ट्र की अनुमति पाकर पांडव बड़े खुश

हुए ओर भीष्म आदि से विदा लेकर माता कुंती

के साथ वारणावत के लिए रवाना हो गए।

ांडवों के चले जाने की खबर पाकर दुर्योधन

की खुशी की तो सीमा न रही। वह अपने दोनों

साथियों -कर्ण एवं शकुनि के साथ बैठकर पांडवों

तथा कुंती का काम तमाम करने का उपाय

सोचने लगा। उसने अपने मंत्री पुरोचन को बुलाकर

युप्त रूप से सलाह दी और एक योजना बनाई।

चुरोचन ने यह सारा काम पूर्ण सफलता के साथ

चुरा करने का वचन दिया और तुरंत वारणावत

के लिए रवाना हो गया। एक शीघ्रगामी रथ पर

बैठकर पुरोचन पांडवों से बहुत पहले वारणावत

जा पहुंचा। वहाँ जाकर उसने पांडवों के ठहरने

के लिए सन, घी, मोम, तेल, लाख, चरबी आदि

जल्दी आग पकड़नेवाली चीज़ों को मिद्ठी में

मिलाकर एक सुंदर भवन बनवाया। इस बीच

अगर पांडव वहां जल्दी पहुँच गए, तो कुछ

समय उनके ठहस्ने के लिए एक और जगह का

बंध पुरोचन ने कर रखा था। दुर्योधन की योजना

यह थी कि कुछ दिनों तक पांडवों को लाख के

अवन में आराम से रहने दिया जाए और जब वे

चूर्ण रूप से निःशंक हो जाएं, तब रात में भवन

में आग लगा दी जाए, जिससे पांडव तो जलकर

भस्म हो जाएँ और कौरवों पर भी कोई दोष न

लगा सके।

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