Hindi, asked by pratik46780, 7 months ago

कोरोना के कारन मनुष्य ने जीना सिखा इस पर अपने विचार लिखो​

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Answered by shamagoyal1978
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कोरोना के कारण मनुष्य ने जीना सिखा, अपने परिवार के साथ वक्त बिताना सीखा, और भविष्य में सारा काम घर से होगा यह सीखा।

कोरोना ने मनुष्य को बहुत बड़ा सबक दिया है।

Answered by nidhirandhawa7
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Answer:

बीते कुछ महीनों से कोरोना की मार से जूझ रही पूरी दुनिया अगले छह महीने, एक साल या 10 साल में आज के मुक़ाबले कहां खड़ी होगी?

मैं रातों को जागता रहता हूं और सोचता रहता हूं कि मेरे अपनों का भविष्य क्या होगा. मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों का क्या होगा?

मैं सोचता हूं कि मेरी नौकरी का क्या होगा. हालांकि, मैं उन भाग्यशाली लोगों में से हूं जिन्हें अच्छी 'सिक पे' मिलती है और जो ऑफिस से बाहर रहकर भी काम कर सकते हैं. मैं यह ब्रिटेन से लिख रहा हूं जहां मेरे कई सेल्फ-एम्प्लॉयड दोस्त हैं, जिन्हें कई महीनों तक पैसे मिलने की उम्मीद नहीं है. मेरे कई दोस्तों की नौकरियां छूट गई हैं.

जिस कॉन्ट्रैक्ट के ज़रिए मुझे मेरी 80 फ़ीसदी सैलरी मिलती है वह दिसंबर में ख़त्म हो गया. कोरोना वायरस ने इकॉनमी पर तगड़ी चोट की है. ऐसे में जब मुझे नौकरी की ज़रूरत होगी, क्या उस वक़्त कोई ऐसा होगा जो भर्तियां कर रहा होगा?

भविष्य को लेकर कई अनुमान हैं. लेकिन, ये सभी इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकारें और समाज कोरोना वायरस को कैसे संभालते हैं और इस महामारी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा. उम्मीद है कि हम इस संकट के दौर से एक ज़्यादा बेहतर, ज़्यादा मानवीय अर्थव्यवस्था बनकर उभरेंगे. लेकिन, अनुमान यह भी है कि हम कहीं अधिक बुरे हालात में भी जा सकते

मुझे लगता है कि हम अपनी स्थिति को समझ सकते हैं. साथ ही दूसरे संकटों को देखकर हम यह भी अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारा भविष्य कैसा होने वाला है.

मेरी रिसर्च का फ़ोकस आधुनिक अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स पर है. इसके केंद्र में ग्लोबल सप्लाई चेन, तनख़्वाह और उत्पादकता जैसी चीज़ें हैं.

मैं इन चीज़ों पर ग़ौर कर रहा हूं कि कैसे आर्थिक क्रियाकलाप क्लाइमेट चेंज और मज़दूरों के कमज़ोर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की वजह बनते हैं.

मैं यह बात ज़ोर देकर कहता रहा हूं कि अगर हम एक सामाजिक तौर पर न्यायोचित और एक बेहतर पर्यावरण वाला भविष्य चाहते हैं तो हमें अपने अर्थशास्त्र को बदलना होगा.

कोविड-19 के इस दौर में इससे ज़्यादा मौजूं कुछ भी नहीं हो सकता है.

कोरोना वायरस महामारी के रेस्पॉन्स दूसरे सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों को लाने वाले जरियों का विस्तार ही है. यह एक तरह की वैल्यू के ऊपर दूसरे को प्राथमिकता देने से जुड़ा हुआ है. कोविड-19 से निपटने में ग्लोबल रेस्पॉन्स को तय करने में इसी डायनेमिक की बड़ी भूमिका है.

ऐसे में जैसे-जैसे वायरस को लेकर रेस्पॉन्स का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए यह सोचना ज़रूरी है कि हमारा आर्थिक भविष्य क्या शक्ल लेगा?

एक आर्थिक नज़रिए से चार संभावित भविष्य हैं.

पहला, बर्बरता के दौर में चले जाएं. दूसरा, एक मज़बूत सरकारी कैपिटलिज़्म आए. तीसरा, एक चरम सरकारी समाजवाद आए. और चौथा, आपसी सहयोग पर आधारित एक बड़े समाज के तौर पर परिवर्तन दिखाई दे. इन चारों भविष्य के वर्जन भी संभव हैं.

Image copyright GETTY IMAGES कोरोना

छोटे बदलावों से नहीं बदलेगी सूरत

क्लाइमेट चेंज की तरह से ही कोरोना वायरस हमारी आर्थिक संरचना की ही एक आंशिक समस्या है. हालांकि, दोनों पर्यावरण या प्राकृतिक समस्याएं प्रतीत होती हैं, लेकिन ये सामाजिक रूप पर आधारित हैं.

हां, क्लाइमेट चेंज गर्मी को सोखने वाली कुछ खास गैसों की वजह से होता है. लेकिन, यह बेहद हलकी और सतही परिभाषा है.

क्लाइमेट चेंज की असलियत समझने के लिए हमें उन सामाजिक वजहों को ढूंढना होगा जिनके चलते हम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार कर रहे हैं.

इसी तरह से कोविड-19 भी है. भले ही सीधे तौर पर इसकी वजह एक वायरस है. लेकिन, इसके असर को रोकने के लिए हमें मानव व्यवहार और इसके वृहद रूप में आर्थिक संदर्भों को समझना होगा.

कोविड-19 और क्लाइमेट चेंज से निपटना तब कहीं ज़्यादा आसान हो जाएगा अगर आप गैर-ज़रूरी आर्थिक गतिविधियों को कम कर देंगे.

क्लाइमेट चेंज के मामले में अगर आप उत्पादन कम करेंगे तो आप कम ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे और इस तरह से कम ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जन होगा.

कोरोना की महामारी से भले ही अभी निपटने का तरीका नहीं समझ आ रहा है, लेकिन इसका मूल लॉजिक बेहद आसान है. लोग आपस में मिलजुल रहे हैं और संक्रमण फैला रहे हैं. ऐसा घरों में भी हो रहा है, दफ़्तरों में भी और यात्राओं में भी. यह मेलजोल, भीड़भाड़ अगर कम कर दी जाए तो एक शख्स से दूसरे शख्स को वायरस का ट्रांसमिशन रुकेगा और नए मामलों में गिरावट आएगी.

लोगों के आपसी संपर्क कम होने से शायद से कई दूसरी कंट्रोल स्ट्रैटेजीज (नियंत्रण रणनीतियों) में भी मदद मिलेगी.

संक्रामक बीमारियों के लिए एक आम कंट्रोल स्ट्रैटिजी कॉन्टैक्ट ढूंढना और आइसोलेशन है. इसमें संक्रमित व्यक्ति के संपर्कों की पहचान की जाती है. इसके बाद इन्हें आइसोलेट किया जाता है ताकि संक्रमण और लोगों तक न पहुंचे. जितनी काबिलियत से आप इन कॉन्टैक्ट्स को ढूंढ लेते हैं उतने ही प्रभावी तरीके से आप संक्रमण पर काबू पाने में सफल होते हैं.

वुहान में जो हुआ उससे हमें सामाजिक दूरी और लॉकडाउन के उपाय अपनाने पड़े जो कि प्रभावी साबित हुए. राजनीतिक अर्थव्यवस्था हमें यह समझने में मदद देती है कि क्यों यूरोपीय देशों, ख़ास तौर पर यूके और यूएस में इन तरीक़ों को पहले से ही क्यों नहीं अपनाया गया.

क्षणभंगुर अर्थव्यवस्था

लॉकडाउन की वजह से ग्लोबल इकॉनमी पर प्रेशर पड़ रहा है. हमें गंभीर मंदी आती दिख रही है. आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई हैं और इसे देखते हुए कुछ वर्ल्ड लीडर लॉकडाउन के उपायों में ढील देने की बात कर रहे हैं.

चीज़ें ख़त्म हो जाने का अर्थशास्त्र बेहद सीधा है. कारोबार होते ही मुनाफ़ा कमाने के लिए हैं. अगर वे उत्पादन नहीं करेंगे तो वे चीज़ें बेच नहीं पाएंगे. इसका मतलब है कि उन्हें मुनाफ़ा नहीं होगा. इसका मतलब है कि उनके पास आपको नौकरी देने की कम गुंजाइश होगी.

Explanation:

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