Hindi, asked by lakshyapathak2, 5 hours ago

कोरोना काल के बाद समाज मे आए एक बड़े परिवतन को दशाते हुए 'मे और मेरी
दुिनया का नया अवतार' विषय पर 80 से 100 शबदो का अनुेद िलखए।

Answers

Answered by garimasingh143
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Explanation:

1. धर्म और नस्ल का भेद – राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दुनिया के ग्लोबल विलेज बनने के साथ ही राष्ट्रवाद की भावना ने जोर पकड़ा है. लगभग हर देश के लोग, किसी न किसी समुदाय से खतरा महसूस करते हैं या अपने आप को उनसे श्रेष्ठ समझते हैं. बीते कुछ समय के भारत को देखें तो यहां सांप्रदायिक समीकरणों की वजह से लगातार सामाजिक समीकरणों को बिगड़ते देखा जाता रहा है. अब जब दुनिया भर में कोरोना वायरस का प्रकोप फैल गया है तो इन सब बातों के बारे में सोचने की फुर्सत ज्यादातर लोगों को नहीं है. अभी समाज, देश और दुनिया बंटे हुये तो हैं लेकिन यह बिलकुल अलग तरह और वजह से हुआ है. इस समय अपने परिवार को छोड़कर लोग पड़ोसी से भी बात नहीं कर रहे हैं तो यह मजबूरी की वजह से है. यही बात देशों के एक-दूसरे से कटने के बारे में भी कही जा सकती है.

2. श्रम की पहचान – सवा अरब की जनसंख्या वाले भारत में मानव संसाधन की कोई कमी नहीं है. शायद यही वजह है कि य़हां पर न तो इंसान की मेहनत की उचित कीमत लगाई जाती है और न ही उसे पर्याप्त महत्व दिया जाता है. कथित छोटे काम करने वालों को अक्सर ही यहां हेय दृष्टि से देखा जाता है. फिर चाहे वह घर में काम करने वाली बाई हो या कचरा उठाने वाला कर्मचारी या घर तक सामान पहुंचाने वाला डिलीवरी बॉय. लेकिन कोरोना वायरस के हमले के बाद ज्यादातर लोगों को (सबको नहीं) इनका महत्व समझ में आने लगा है. हममें कई लोगों ने पिछले दिनों इस बारे में जरूर सोचा होगा कि वह व्यक्ति होगा जो सुबह-शाम हमारे नल की सप्लाई शुरू करता करता है अगर वह ऐसा करना बंद कर दें तो क्या होगा? या फिर कूड़े वाला अगले 21 दिन कूड़ा ना उठाये तो? कहीं लॉकडाउन खत्म होने से पहले वॉटर प्यूरीफायर खराब हो गया तो? या फिर डिलीवरी करने वाले ऐसा करना बंद कर दें तो? कोरोना संकट के इस वक्त में बड़े फैसले और ‘महत्वपूर्ण’ काम करने वाले ज्यादातर लोग घरों में बंद हैं और बहुत मूलभूत काम पहले की तरह जमीन पर ही हो रहे हैं. यह अहसास इस वक्त ज्यादातर लोगों को है लेकिन यह कितना स्थायी है यह कुछ समय बाद पता चल पाएगा.

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