History, asked by aradhanagupta296, 1 month ago

कोरोना काल में भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है| इस पर एक प्रस्ताव लिखिए । 5०० शब्दों में​

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Answered by SMOOTHIE69
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hey mate

जानकारों का कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा ये दो बातों पर निर्भर करेगा. एक तो ये कि आने वाले वक़्त में कोरोना वायरस की समस्या भारत में कितनी गंभीर होती है और दूसरा कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है.

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कोरोना वायरस ने न केवल भारत की बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था की हालत खराब कर रखी है. विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण भारत की इकोनॉमी पर बड़ा असर पड़ने वाला है. कोरोना के भारत की आर्थिक वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी.

दरअसल कोरोना वायरस के कारण देशभर में लॉकडाउन है. सभी फैक्ट्री, ऑफिस, मॉल्स, व्यवसाय आदि सब बंद है. घरेलू आपूर्ति और मांग प्रभावित होने के चलते आर्थिक वृद्धि दर प्रभावित हुई है. वहीं जोखिम बढ़ने से घरेलू निवेश में सुधार में भी देरी होने की संभावना दिख रही है. ऐसे में अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में पहुंच सकती है. रिपोर्ट में सरकार को वित्तीय और मौद्रिक नीति के समर्थन की जरूरत पर जोर देने की सलाह दी गई है. चुनौती से निपटने के लिए भारत को इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए जल्द से जल्द ज्यादा प्रभावी कदम उठाना होगा. साथ ही स्थानीय स्तर पर अस्थायी रोज़गार सृजन कार्यक्रमों पर भी ध्यान देना होगा. विश्व बैंक ने आगाह किया है कि इस महामारी की वजह से भारत ही नहीं बल्कि समूचा दक्षिण एशिया गरीबी उन्मूलन से मिलें फायदे को गँवा सकता है. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन ने कहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ़ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं रहा, बल्कि ये एक बड़ा लेबर मार्केट और आर्थिक संकट भी बन गया है जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा.

दुनिया भर में बचत और राजस्व के रूप में जमा खरबो डॉलर स्वाहा हो चुका है. वैश्विक जीडीपी में रोज कमी दर्ज की जा रही है. लाखो लोग अपना रोज़गार खो चुके है अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने बताया है कि 90 देश उससे मदद मांग रहे है. आईएलओ के अनुसार कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में ढाई करोड़ नौकरियां ख़तरे में हैं. COVID-19 के कारण चीन से होने वाले आयात के प्रभावित होने से स्थानीय और बाहरी आपूर्ति श्रृंखला के संदर्भ में चिंताएँ बढ़ी हैं.सरकार द्वारा COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन और सोशल डिसटेंसिंग (Social Distancing) जैसे प्रयासों से औद्योगिक उत्पादन प्रभावित हुआ है. लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी बढ़ी है, जिससे सार्वजनिक खर्च में भारी कटौती हुई है. लॉकडाउन के कारण कच्चे माल की उपलब्धता, उत्पादन और तैयार उत्पादों के वितरण की श्रृंखला प्रभावित हुई है, जिसे पुनः शुरू करने में कुछ समय लग सकता है. उदाहरण के लिये उत्पादन स्थगित होने के कारण मज़दूरों का पलायन बढ़ा है, ऐसे में कंपनियों के लिये पुनः कुशल मज़दूरों की नियुक्ति कर पूरी क्षमता के साथ उत्पादन शुरू करना एक बड़ी चुनौती होगी. जिसका प्रभाव अर्थव्यवस्था की धीमी प्रगति के रूप में देखा जा सकता है. खनन और उत्पादन जैसे अन्य प्राथमिक या द्वितीयक क्षेत्रों में गिरावट का प्रभाव सेवा क्षेत्र कंपनियों पर भी पड़ा है. जो सेक्टर इस बुरे दौर से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे वहीं पर नौकरियों को भी सबसे ज़्यादा ख़तरा होगा. एविएशन सेक्टर में 50 प्रतिशत वेतन कम करने की ख़बर तो पहले ही आ चुकी है. रेस्टोरेंट्स बंद हैं, लोग घूमने नहीं निकल रहे, नया सामान नहीं ख़रीद रहे लेकिन, कंपनियों को किराया, वेतन और अन्य ख़र्चों का भुगतान तो करना ही है. ये नुक़सान झेल रहीं कंपनियां ज़्यादा समय तक भार सहन नहीं कर पाएंगी और इसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ेगा. हालांकि, सरकार ने कंपनियों से नौकरी से ना निकालने की अपील है लेकिन इसका बहुत ज़्यादा असर नहीं होगा. “विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री हैंस टिमर ने कहा कि भारत का परिदृश्य अच्छा नहीं है. टिमर ने कहा कि यदि भारत में लॉकडाउन अधिक समय तक जारी रहता है तो यहां आर्थिक परिणाम विश्व बैंक के अनुमान से अधिक बुरे हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए भारत को सबसे पहले इस महामारी को और फैलने से रोकना होगा और साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभी को भोजन मिल सके. लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ेगा और हमारी अर्थव्यवस्था का 50 प्रतिशत जीडीपी अनौपचारिक क्षेत्र से ही आता है. ये क्षेत्र लॉकडाउन के दौरान काम नहीं कर सकता है. वो कच्चा माल नहीं ख़रीद सकते, बनाया हुआ माल बाज़ार में नहीं बेच सकते तो उनकी कमाई बंद ही हो जाएगी.

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