कोरोना काल में चल रही ऑनलाइन शिक्षा पर अनुच्छेद
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शिक्षा अपने मूल में सामाजीकरण की एक प्रक्रिया है. जब-जब समाज का स्वरूप बदला शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई. आज कोरोना संकट के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के जरिये शिक्षा के स्वरूप में बदलाव का प्रस्ताव नीति निर्धारकों के द्वारा पुरजोर तरीके से रखा जा रहा है.
ऐसे में यह देखना जरूरी है कि समाज की संरचना और उसके उद्देश्य में ऐसा कौन-सा मूलभूत परिवर्तन हो गया है कि इसे अवश्यंभावी बताया जा रहा है. आजादी के बाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित राष्ट्रीयता वाला सार्वभौमिक शिक्षा का मॉडल क्या अब किसी काम के लायक नहीं बचा?
क्या सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक समानता को अर्जित किया जा चुका है ? ऑनलाइन शिक्षा के साथ ही जिस नई शिक्षा नीति को लागू करने की तरफ सरकार बढ़ रही है उससे शिक्षा का कौन सा सामाजीकरण भविष्य का उद्देश्य है?
ऑनलाइन शिक्षा मात्र तकनीक नहीं सामाजीकरण की नई प्रक्रिया है जिसके जरिये सरकार और नीति निर्धारकों की नीति व नीयत को समझा जा सकता है और उसे उसी रूप में देखने की भी जरूरत है.
कोरोना संकट में शारीरिक दूरी बनाए रखकर शिक्षा के लिए तकनीकी का प्रयोग एक बात है. वैसे भी तकनीकी के विकास के साथ ही शिक्षा में भी उसका उपयोग होता रहा है. यह होना जरूरी भी है.
ब्लैकबोर्ड से लेकर स्मार्टबोर्ड तक बदलती तकनीकी का उपयोग क्लासरूम टीचिंग को मजबूत और रुचिकर बनाने के लिए किया जाता था है. लाइब्रेरी का डिजिटल होना उसी प्रक्रिया का एक रूप है.
प्रोफेसरों के व्याख्यान को रिकॉर्ड करना और उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराना भी तकनीकी का उपयोग करना ही है. इन तकनीकों का उपयोग कर सामाजीकरण की प्रक्रिया को शिक्षा के द्वारा बढ़ाया जाता रहा था.
आज जिस तरह नई शिक्षा नीति और ऑनलाइन शिक्षा की बात की जा रही है, उसका इससे कोई संबंध नहीं है. उसका संबंध शिक्षा के निजीकरण के मॉडल से है, जिसकी जड़ में बिड़ला-अंबानी कमेटी की रिपोर्ट है. ऐसे में उसकी ऐतिहासिकता में जाने बिना इसे समझना संभव नहीं.
वैसे यह तथ्य भी बहुत मजेदार है कि शिक्षाविदों के द्वारा शिक्षा नीति बनाने की परंपरा जो राधाकृष्णन से चली आ रही थी, उसे खत्मकर बिड़ला-अंबानी जैसे पूंजीपतियों के नेतृत्व में शिक्षा नीति तैयार करने का निर्णय अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के द्वारा किया गया.
स्वाभाविक है कि इससे नजरिये में भी फर्क आना था सो आया. पहली बार शिक्षा के क्षेत्र को अरबों-खरबों डॉलर के वैश्विक-बाजार के तौर पर पहचाना गया. सुझाव दिया गया कि इस क्षेत्र को व्यवसाय यानी मुनाफा कमाने का धंधा घोषित किया जाए.
शिक्षा में निजीकरण की प्रक्रिया तो पहले ही से चल रही थी, लेकिन अब व्यवसायीकरण की तरफ जाने की घोषणा हो गई. शिक्षा को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन(डब्ल्यूटीओ) के जनरल एग्रीमेंट ट्रेड एंड सर्विस (GATS) के तहत व्यावसायिक क्षेत्र में शामिल किए जाने का लगातार वैश्विक दबाव डाला जाने लगा.
इसका मतलब ही था कि सरकार के द्वारा दी जाने वाले सभी सब्सिडी या अनुदान को खत्म करना. आज उसी के तहत नई शिक्षा नीति में यूजीसी को खत्म करना तय हुआ है.
यूजीसी की स्थापना का उद्देश्य ही राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा के विकास के लिए अनुदान देना और देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नियमन (रेग्युलेशन) बनाना था. जब सब्सिडी ही खत्म कर दी जानी है तो यूजीसी की जरूरत कहां!
आवंटन के लिए स्वायत्त संस्थान के तौर पर जैसे योजना आयोग को पहले खत्म किया गया, वैसे ही आज उच्च शिक्षा के आवंटन के लिए जो स्वायत्त संस्था यूजीसी है, उसे भी खत्म करना तय किया जा रहा है.
यूजीसी अनुदान के साथ ही देशभर की उच्च शिक्षा के रेग्युलेशन का काम भी करता है. वह उच्च शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों, शोधार्थियों और शिक्षकों की सेवा-शर्तों को भी निर्धारित करता है.
शिक्षा का क्षेत्र राज्य के अधीन था जिसमें इमरजेंसी के दौरान परिवर्तन कर कॉन्करेंट लिस्ट में लाया गया था और अब नई शिक्षा नीति में इसका केंद्रीकरण किया जा रहा है. राज्य सरकारों की भागीदारी नीति निर्धारण में न्यूनतम है.
जिस केंद्रीकृत व्यवस्था की अवधारणा लाई जा रही है, पहले इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री को करनी थी, अब उसमें थोड़ा परिवर्तन कर शिक्षा मंत्री को जिम्मेदारी देने की बात की गई है.
शिक्षाविदों की उसमें भूमिका को भी एक तरह से इतना कम कर दिया गया है कि वे बस प्रतीक बनकर रह जाएंगे. इसमें जिनकी भूमिका को बढ़ाया गया है, वे हैं व्यावसायिक घराने और राजनीतिक हस्तक्षेप.
नीति निर्धारण के अलावा बाकी सभी तरह के नियमन और सेवा-शर्तों को उच्च शिक्षण संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर के द्वारा तय किया जाएगा. नई शिक्षा नीति में सभी संस्थानों के स्वायत्तता का प्रस्ताव है.
स्वायत्तता का मतलब है उस संस्थान को मिलने वाला अनुदान का खत्म होना और उस संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर यानी मैनेजमेंट की स्वायत्तता. ये संस्थान अब इन गवर्नरों की प्राइवेट कंपनी की तरह होंगे.
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