कोरोना काल में शिक्षकों की भूमिका speech in Hindi
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शिक्षण और प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सफल जीवन जीने के लिए सशक्त बनाना तथा स्वयं, परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान देना है। इसमें शिक्षक और शिक्षार्थी की भूमिका सबसे प्रभावी साबित हो सकती है। पूर्व में भारतीय शिक्षण संस्थान महान विचारों, नवाचार और उद्यमशीलता की गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। भारत को एक बार फिर विश्व गुरु बनाने का अवसर मिला है। इस वैश्विक महामारी के दौर में भारत में शिक्षक ओर शिक्षार्थी नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कोविड-19 ने जहां जीवन को नए सिरे से जीने का रास्ता दिखाने के साथ अकेले रहने की मानवीय क्षमता एवं स्वयं के साथ नए प्रयोग के लिए प्रेरित किया है। इस विषम परिस्थिति से शीघ्र निकलने के लिए शिक्षाविद और शिक्षार्थी नए सिरे से सोचने के लिए विवश हैं। कोविड-19 के झटके ने शिक्षण, अधिगम एवं मूल्यांकन को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया है। साथ ही अब इसके पुन: मूल्यांकन की भी आवश्कता है।
शिक्षा 4.0: सीखने का नया दृष्टिकोण
सीखने का एक नया दृष्टिकोण है- शिक्षा 4.0; यह उभरती हुई चौथी औद्योगिक क्रांति (उद्योग 4.0) के साथ खुद को जोड़ता है। औद्योगिक क्रांति के केंद्र में स्मार्ट तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स है, जिसका असर अब धीरे-धीरे हमारे पाठ्यक्रमों पर पड़ रहा है। विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों को एक ऐसी दुनिया के लिए तैयार करना होगा ताकि वे औद्योगिक क्रांति प्रणालियों के साथ दो-दो हाथ कर सकें। इसका मतलब है कि छात्रों को इन तकनीकों के बारे में पढ़ाने, सीखने के दृष्टिकोण को बदलने के साथ उन्हें सफल, स्वरोजगारी स्नातक बनाना होगा। इससे उनमें एक नया दृष्टिकोण पैदा होगा, जिससे स्वावलंबी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त होगा। भविष्य में आवश्यक कौशल के साथ शिक्षण और सीखने के तरीकों को जोड़ कर विश्वविद्यालय छात्रों को चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए सफलतापूर्वक तैयार कर सकते हैं। शिक्षा 4.0 के रूप में जो सबसे बड़ा बदलाव दिखने की संभावना है, उसका शिक्षण प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी से गहरा संबंध है। डिजिटल तकनीक का उपयोग और नए तरीके अपनाने का उद्देश्य छात्रों को शिक्षा प्रक्रिया में जोड़ कर रखना है। आज के दौर में उच्च शिक्षा संस्थान सीखने के अधिक व्यक्तिगत तरीके की ओर बढ़ रहे हैं। इसलिए भविष्य के स्वरोजगार की स्थिति के लिए स्नातकों को तैयार करने की आवश्कता है। विश्वविद्यालयों के डिजिटल विकास के साथ कुछ पारंपरिक प्रक्रियाओं में बदलाव भी जरूरी हैं। आज दुनिया के 91 प्रतिशत से अधिक छात्र कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित हुए हैं। शिक्षा पर यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए कोविड-19 से प्रभावित कई देशों में स्कूल और उच्च शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए हैं। इससे 191 देशों में 157 करोड़ से अधिक छात्र प्रभावित हुए हैं। लॉकडाउन के कारण भारत में भी लगभग 32 करोड़ से अधिक विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं।
आनलाइन शिक्षा का सबसे जटिल कारक है इंटरनेट कनेक्टिविटी। इसलिए मजबूत इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करनी होगी ताकि सीखने की प्रक्रिया में कोई बाधा न आए। वर्तमान में शिक्षक दूरस्थ शिक्षा उपकरणों का उपयोग करके पठन और पाठन करा रहे हैं। माता-पिता भी घर पर नई शिक्षण तकनीक को सीख रहे हैं। 40 दिनों के लॉकडाउन के दौरान देशभर के स्कूलों और कॉलेजों में आॅनलाइन शिक्षा में वृद्धि हुई है। हालांकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के छात्रों में आॅनलाइन शिक्षण का उपयोग एवं दक्षता अलग-अलग है।
आॅनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में भारत की गिनती दुनिया के अग्रणी
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शिक्षण और प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सफल जीवन जीने के लिए सशक्त बनाना तथा स्वयं, परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता के लिए सर्वश्रेष्ठ योगदान देना है। इसमें शिक्षक और शिक्षार्थी की भूमिका सबसे प्रभावी साबित हो सकती है। पूर्व में भारतीय शिक्षण संस्थान महान विचारों, नवाचार और उद्यमशीलता की गतिविधियों के केंद्र रहे हैं। भारत को एक बार फिर विश्व गुरु बनाने का अवसर मिला है। इस वैश्विक महामारी के दौर में भारत में शिक्षक ओर शिक्षार्थी नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कोविड-19 ने जहां जीवन को नए सिरे से जीने का रास्ता दिखाने के साथ अकेले रहने की मानवीय क्षमता एवं स्वयं के साथ नए प्रयोग के लिए प्रेरित किया है। इस विषम परिस्थिति से शीघ्र निकलने के लिए शिक्षाविद और शिक्षार्थी नए सिरे से सोचने के लिए विवश हैं। कोविड-19 के झटके ने शिक्षण, अधिगम एवं मूल्यांकन को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया है। साथ ही अब इसके पुन: मूल्यांकन की भी आवश्कता है।
शिक्षा 4.0: सीखने का नया दृष्टिकोण
सीखने का एक नया दृष्टिकोण है- शिक्षा 4.0; यह उभरती हुई चौथी औद्योगिक क्रांति (उद्योग 4.0) के साथ खुद को जोड़ता है। औद्योगिक क्रांति के केंद्र में स्मार्ट तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स है, जिसका असर अब धीरे-धीरे हमारे पाठ्यक्रमों पर पड़ रहा है। विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों को एक ऐसी दुनिया के लिए तैयार करना होगा ताकि वे औद्योगिक क्रांति प्रणालियों के साथ दो-दो हाथ कर सकें। इसका मतलब है कि छात्रों को इन तकनीकों के बारे में पढ़ाने, सीखने के दृष्टिकोण को बदलने के साथ उन्हें सफल, स्वरोजगारी स्नातक बनाना होगा। इससे उनमें एक नया दृष्टिकोण पैदा होगा, जिससे स्वावलंबी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त होगा। भविष्य में आवश्यक कौशल के साथ शिक्षण और सीखने के तरीकों को जोड़ कर विश्वविद्यालय छात्रों को चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए सफलतापूर्वक तैयार कर सकते हैं। शिक्षा 4.0 के रूप में जो सबसे बड़ा बदलाव दिखने की संभावना है, उसका शिक्षण प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी से गहरा संबंध है। डिजिटल तकनीक का उपयोग और नए तरीके अपनाने का उद्देश्य छात्रों को शिक्षा प्रक्रिया में जोड़ कर रखना है। आज के दौर में उच्च शिक्षा संस्थान सीखने के अधिक व्यक्तिगत तरीके की ओर बढ़ रहे हैं। इसलिए भविष्य के स्वरोजगार की स्थिति के लिए स्नातकों को तैयार करने की आवश्कता है। विश्वविद्यालयों के डिजिटल विकास के साथ कुछ पारंपरिक प्रक्रियाओं में बदलाव भी जरूरी हैं। आज दुनिया के 91 प्रतिशत से अधिक छात्र कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित हुए हैं। शिक्षा पर यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए कोविड-19 से प्रभावित कई देशों में स्कूल और उच्च शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए हैं। इससे 191 देशों में 157 करोड़ से अधिक छात्र प्रभावित हुए हैं। लॉकडाउन के कारण भारत में भी लगभग 32 करोड़ से अधिक विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं।
आनलाइन शिक्षा का सबसे जटिल कारक है इंटरनेट कनेक्टिविटी। इसलिए मजबूत इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करनी होगी ताकि सीखने की प्रक्रिया में कोई बाधा न आए। वर्तमान में शिक्षक दूरस्थ शिक्षा उपकरणों का उपयोग करके पठन और पाठन करा रहे हैं। माता-पिता भी घर पर नई शिक्षण तकनीक को सीख रहे हैं। 40 दिनों के लॉकडाउन के दौरान देशभर के स्कूलों और कॉलेजों में आॅनलाइन शिक्षा में वृद्धि हुई है। हालांकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के छात्रों में आॅनलाइन शिक्षण का उपयोग एवं दक्षता अलग-अलग है।
आॅनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में भारत की गिनती दुनिया के अग्रणी देशों में होती है। इसलिए भारत में आॅनलाइन शिक्षा का चलन नया नहीं है। देश के कई सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में आॅनलाइन कक्षाएं काफी पहले से चल रही हैं। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, डएफ२, रहअअट, टडडउ२, ज्ञानदर्शन, विद्याधन आदि इंटरनेट और दूरदर्शन के माध्यम से प्रसारित किए जा रहे हैं। हालांकि, कोविड-19 के कारण आॅनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में काफी तेजी आई है और अब मोबाइल नेटवर्क सबसे सहज माध्यम बन गया है। तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी ने ही ज्ञान अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण है। भविष्य की शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की भूमिका सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाने के साथ व्यक्तिगत विकास पर केंद्रित रहेगी। पारंपरिक तरीकों से शिक्षा जारी रखने के बजाय परिणाम आधारित शिक्षण पर ध्यान अधिक हो, इसके लिए उनके दृष्टिकोण में बड़े पैमाने पर बदलाव की आवश्यकता होगी। इस परिवर्तन में रोजगार, छात्रों के अनुभव, उत्कृष्ट अनुसंधान तथा सामाजिक प्रभाव जैसे क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं। भविष्य के शैक्षणिक संस्थानों को सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजने की दिशा में लगातार काम करना होगा। संस्थानों को भविष्य का पाठ्यक्रम सिखाना चाहिए, क्योंकि शिक्षार्थियों को दुनियाभर से भविष्य की प्रौद्योगिकी द्वारा लाए गए बदलावों पर काम करना है। इसलिए अब हमें अपने पाठ्यक्रमों को अद्यतन करने में तेजी लानी होगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस वैश्विक महामारी के दौर में आने वाली पीढ़ियों को कैसे तैयार करेंगे? अधिकांश पाठ्यक्रमों की विषय सामग्री को बदलते समय की मांग को ध्यान में रख कर भविष्य के पाठ्यक्रम के बारे में सार्थक चर्चा होनी चाहिए।
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