Hindi, asked by yashwantbora, 11 days ago

कोरोना काल: स्कूल के बिना मेरा जीवन essay in Hindi​

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Answered by мααɴѕí
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इस वायरस से बच्चों के बीमार पड़ने का रिस्क बहुत ही कम होता है.

व्यस्कों, ख़ासकर बुज़ुर्ग लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने और इससे होने वाली जटिलताओं से जान गंवाने का ज़्यादा ख़तरा रहता है.बाल रोग विशेषज्ञ डॉ रवि मलिक ने बीबीसी हिंदी को बताया,

"बच्चों को ये बीमारी बहुत ज़्यादा परेशान नहीं करती है. हालांकि कुछ मामलों में ये ख़तरनाक साबित हुई है और बच्चों की मौत भी हुई है. लेकिन ऐसे मामले बहुत ही कम हैंउन्होंने कहा कि मौटे तौर पर बच्चों के लिए इस बीमारी का "एटिट्यूड काफी प्रोटेक्टिव" रहा है.

डॉ रवि मलिक के मुताबिक़, दुनियाभर में इस बीमारी की चपेट में आए लोगों में सिर्फ 2% ऐसे हैं, जो 18 साल की उम्र से कम है. उनके मुताबिक़, भारत में भी लगभग यही स्थिती है.

Answered by 44Misty02
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कोरोना संक्रमण ने बहुत सारे तौर-तरीके बदले हैं, इसमें शिक्षा भी शामिल है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर का अर्जुनपुर गढ़ प्राथमिक विद्यालय अपने जिले के लिए प्रेरणा बनकर उभरा है. यहां कोरोना संकट के दौरान भी जागरुकता की पाठशाला चलती रही है. ऐसा करने वाले इसी प्राथमिक विद्यालय के पूर्व छात्र और प्रधानाचार्य देवब्रत त्रिपाठी हैं, जिन्होंने पूरा जीवन इस स्कूल को सजाने और संवारने में लगा दिया है.

त्रिपाठी की 38 साल की कड़ी मेहनत के चलते ही कभी जर्जर भवन रहा ये स्कूल एक खूबसूरत बिल्डिंग के रूप में चमचमा रहा है. इसके परिसर में फलदार और खूबसूरत पेड़ों की बगिया लहलहा रही है. मैदान में लगी मखमली घास स्कूल की खूबसूरती में चार चांद लगा रही है.

वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान प्रधानाचार्य देवब्रत ने विद्यालय की दहलीज के बाहर जाकर अगल-बगल के गांवों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए पाठशाला चलाई. इतना ही नहीं लोगों को संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी का पाठ पढ़ाया, मास्क व सैनिटाइजर बांटे.

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