कोरोना के दौरान सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर निबंध
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भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कोरोना महामारी होने के पहले से ही बिगड़ी हुई थी। जितनी भी रेटिंग एजेंसिया हैं उन्होंने भारत के विकास दर के वृद्धि अनुमान में लगातार गिरावट दर्ज़ कराई थी। उन्होंने बताया था कि भारत में महंगाई और बेरोज़गारी दर उच्च स्तर पर है।
ऐसे में कोरोना महामारी के चलते जिस तरीके से भारत तथा विश्व के अधिकांश देशों में पूर्ण लॉकडाउन नीति अपनाई गई है, उससे ना केवल भारत को बल्कि विश्व के हर देश को इसकी आर्थिक एवं सामाजिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
जागरूकता ही कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय है
पहला सवाल यह उठता है कि क्या इस महामारी से निपटने का कोई और दूसरा रास्ता नहीं था? बहुत हद तक इसका उत्तर ना है, क्योंकि इस महामारी से निपटने के लिए अभी तक कोई वैक्सीन इजात नहीं हो पाई है।
बचाव, जागरूकता एवं एकांतवास ही इस समस्या से निपटने में कारगर है, जिसे तमाम देश ने अपना रखा है।
आर्थिक प्रभाव के अलावा और क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं?
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कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए मास्क लगाकर बाज़ार जाती महिलाएं। फोटो साभार- सोशल मीडिया
अगर इस प्रश्न के उत्तर पर गहनता से विचार किया जाए तो हम पाएंगे कि इस महामारी के चलते पहला नकारात्मक प्रभाव तो आर्थिक ही होगा। जिसका अगर विश्लेषण किया जाए तो शायद उस पर पूरी की पूरी एक किताब लिखी जा सकती है।
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मगर मेरा उद्देश्य यहां इस महामारी से उत्पन्न उन सामाजिक प्रभावों पर विचार करना है, जो तत्काल अथवा महामारी के उपरांत पूर्ण या आंशिक रूप से देखने को मिल सकते है। अतः मेरा यह लेख विभिन्न सामाजिक आयामों पर ही केन्द्रित रहेगा।
महामारी का प्रथम प्रभाव
इस क्रम में इस महामारी का पहला और सबसे गंभीर प्रभाव तो उन परिवारों पर ही पड़ेगा जिनके सदस्य इस बीमारी के चलते मृत हो गए हैं।
वे अगर परिवार के मुखिया थे तो ऐसे में परिवार संभालने की ज़िम्मेदारी, बच्चों का वर्तमान एवं भविष्य सब अनिश्चित हो जाएगा। चूंकि इस महामारी से मरने वालों की संख्या हज़ारो में है। अतः इसका व्यापक असर उन देश के समाज पर भी देखने को मिलेगा।
महामारी का द्वितीय प्रभाव
महामारी का दूसरा सामाजिक प्रभाव ‘नस्लभेदी प्रभाव’ का उत्पन्न होना है। जैसा कि हमें मालूम है इस बीमारी की शुरुआत चीन से हुई है इसलिए चीनी नागरिकों को आगामी कुछ वर्षो तक इस महामारी के चलते जाना-पहचाना जा सकता है।
अन्य देशों के लोगों द्वारा उन पर ना केवल नस्लभेदी टिप्पणी की जा सकती है, बल्कि उन्हें उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ सकता है। भारत में तो नॉर्थ ईस्ट के भारतीयों पर पहले से ही चीनी, नेपाली, चिंकी-पिंकी, मोमोज़ जैसी नस्लभेदी टिप्पणियां होती रही हैं। अब इस क्रम में कोरोना का नाम भी जुड़ना तय है, जिसे एक सामाजिक समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए।
महामारी का तृतीय गंभीर सामाजिक प्रभाव