Hindi, asked by ap9455932177, 5 months ago

कोरोना काउंट के कारण लोगों की जीविका पर संकट 150 शब्दों का अनुच्छेद​

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Answered by ansh8d
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Gypsy and businessman I have to be a good day today and I have no clue how are you going out with you I been trying for the first one is the use of the day Happy Birthday my mom and I have to go back and I have to go back and I have you too babe I

Answered by jitendrakumarsha2432
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कोरोनावायरस संकट के बीच जीवन ही नहीं अब जीविका बचाना भी हो गया है जरूरी

जीवन और जीविका को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है. ख़ासतौर पर तब, जब इस देश में सोशल सिक्योरिटी नाम की कोई चीज़ नहीं है और सवा अरब लोगों में से 90% से ज़्यादा लोग असंगठित क्षेत्र के भरोसे जीते हैं.

कोरोनावायरस त्रासदी के बीच अब वक्त आ गया है कि जीवन बचाने के साथ जीविका बचाने पर भी सोचा जाये क्योंकि बिना जीविका, जीवन अर्थहीन सा हो जाता है. अगर आपको लगता है कि ये बात करना अभी जल्दबाजी है तो आप गलत सोच रहे हैं. क्योंकि अगर अभी ये सोचना नहीं शुरू किया गया तो देश में भुखमरी, अपराधों और आत्महत्याओं से हुई मौतों की तादाद कोरोना से हुई मौतों से कहीं ज्यादा हो सकती है.

इस समय इस वैश्विक महामारी पर काबू पाने को सरकारें, चाहे केंद्र की हो या राज्यों की, भरसक कोशिश कर रही हैं. हालांकि ये सच है कि जाहिल तबलीगी अगर ‘कोरोना के सौदागर’ न बने होते तो आज शायद हम थोड़ी बेहतर स्थिति में होते पर अब स्थिति ज़्यादा चिंताजनक हो गयी है… भगवान न करे कि भारत के हालात इटली या अमेरिका के रास्ते पर बढ़े भी, लेकिन अब वो वक़्त आ गया है जब देश को घेरे हुए इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए सरकार को कई तरफ़ वॉर करना होगा. अब जीवन बचाने के साथ जीविका बचाने की ओर भी सोचना ही होगा. अगर जीवन के साथ जीविका नहीं बची तो कल को जब हम इस महामारी से निजात पा लेंगे तब जो होने की आशंका है वो आज के संकट से बड़ी हो सकती है.

जीवन और जीविका को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है. ख़ासतौर पर तब, जब इस देश में सोशल सिक्योरिटी नाम की कोई चीज़ नहीं है और सवा अरब लोगों में से 90% से ज़्यादा लोग असंगठित क्षेत्र के भरोसे जीते हैं. जहां छोटी नौकरियां हैं, छोटे-छोटे धंधे, ठेले-खोमचे हैं, ठेके पर काम करने वाले हैं, कामगार कारीगर हैं, जहां लोग रोज़ कमाते हैं और रोज़ खाते हैं. इन सब की जीविका पर तो ख़तरा मंडरा ही रहा है बल्कि बड़ी-बड़ी कम्पनियों में काम करने वालों पर भी तलवार लटक रही है. वहां भी नौकरियां जा सकती हैं या तनख्वाहें कम हो सकती हैं. हो भी रहीं हैं.

प्रधानमंत्री लाख कहें की हर फ़ैक्टरी या दुकान मालिक को अपने सभी कर्मचारियों को तनख़्वाह देनी है और मकान मालिक किराया ना ले. मकान, दुकान या फ़ैक्टरी मालिकों ने एक-दो महीने ये मान भी लिया तो फिर उसके बाद क्या वो इस हालत में रहेगा कि बिना काम, बिना आमदनी तनख़्वाह दे पाए? जिनका काम ही किराए से चलता हो वो क्या करेंगे? लोगों के पास आमदनी नहीं होगी तो वह क्या खायेंगे, परिवार को कैसे खिलायेंगे?

ज़ाहिर है ऐसे लोग उनसे छीनेंगे, जिनके पास होगा. यानी अपराध बढ़ सकते हैं जैसे करीब 30 साल पहले टूटे फूटे सोवियत देशों में, रूस में हुए थे… या फिर लोग टूट जायेंगे और खुद को खत्म कर लेंगे. याद है 2008 की मंदी के बाद दो साल के अंदर अमेरिका में दस हज़ार से ज्यादा लोगों ने आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या कर ली थी. वैसे आपको महाराष्ट्र के किसान भी तो याद होंगे.

इसीलिए हमें अभी से लोगों की रोज़ी रोटी की चिंता भी शुरू करना बेहद ज़रूरी है. इसकी शुरुआत बाज़ार में आ रही भयानक मंदी से निपटने की कोशिश से ही होगी. क्योंकि कोरोना बाद का भविष्य बहुत काला नज़र आ रहा है. तमाम अर्थशास्त्रियों की भी यही राय है. गोल्ड्मैन सैक्स के मुताबिक़ चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी गिर कर 1.6 तक जा सकती है. पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं कि 50 फीसदी से ज्यादा आर्थिक गतिविधियां ठप होने की वजह से जीडीपी में केवल एक महीने में 6 फीसदी की गिरावट आ सकती है जबकि भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद विरमानी मानते हैं कि अगर लॉकडाउन मई के आखिर तक खिंचा तो देश की जीडीपी में 9 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. उद्योग व्यापार संगठन एसौचेम तो पहले ही सरकार से 200 बिलियन डॉलर तक का पैकेज मांग चुका है ताकि धंधों की हालत सुधारी जा सके और नौकरियां बचायी जा सकें.

हालांकि कोरोना पर नियंत्रण की सरकार की जो कोशिशें है वो कहीं से कम नहीं हैं. इसके लिए सरकार पौने दो हज़ार करोड़ का एक पैकेज पहले ही घोषित कर चुकी है जिसमें ग़रीब, मज़दूर, किसान तबके के लोगों को सीधे कैश ट्रांसफर करने की बात भी कही गई है. इसके अलावा इसी हफ़्ते सरकार ने 15 हज़ार करोड़ रुपए का एक और पैकेज घोषित किया जो देश और राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं को और मज़बूत करने के काम आएगा. पर अब मोदी सरकार को इससे आगे की रणनीति बनाने और अमल में लाने में बिल्कुल देर नहीं करनी चाहिये, अर्थव्यवस्था की तरफ़ गम्भीरता से न देखना हमें आगे बहुत भारी पड़ सकता है. हमें फौरन ये सुनिश्चित करना होगा कि डूबती-उतराती अर्थव्यवस्था को कोरोना के बाद कम से कम किनारा दिखता रहे और इससे पहले कि उसकी सांसें उखड़ जाये उसे बचा लिया जाये.

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