Hindi, asked by imranmohd71767, 4 hours ago


कॉरोना में लाकडापन के
तहत
परिवार
का एक नया स्वरूप उभर कर समने आया है।
यारिवारिक सम्बन्च स्नेह जल से पुन:
समिसिंचित हुए हैं। इस पर अपने विचार 80
100) शब्दों में लिया।​

Answers

Answered by atharv18259
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Answer:

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Answered by shashwat2008chauhan
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वह छात्रों की माओं से मोबाइल के जरिए संवाद करती हैं. वह कहती हैं, "मैं नियमित तौर पर उनके काम को व्हाट्सएप के जरिए देखती हूं."

आंध्र प्रदेश की सरकार ने कक्षा 6 से सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी कर दिया है. शिक्षकों को यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाएं.

घर के बने खाने की अहमियत समझ रहे बच्चे

दिल्ली के लाजपत नगर में रहने वाली होम मेकर रितु शर्मा भी बच्चों के स्कूलों में हुई छुट्टियों को लेकर खुश हैं. उनके बच्चे 12वीं और 10वीं कक्षा में हैं.

वह कहती हैं, "मेरे बच्चे अब पैसे की कीमत को समझ रहे हैं क्योंकि कारोबार बंद पड़ा है. वे घर के बने खाने की अहमियत भी जान रहे हैं."

  1. वो कहती हैं, "व्यस्त अकेडमिक शेड्यूल के चलते बच्चे मुझे वक्त नहीं दे पाते थे और मैं बच्चों को मिस करती थी. अब हम लोग एक-दूसरे के साथ ज्यादा वक्त बिताते हैं. मेड्स को छुट्टी दे दी गई है. हम घर पर खाना बनाते हैं और घर साफ़ करते हैं."

कोरोना वायरस, फैमिली

क्रिएटिविटी को लगे पंख

दिल्ली की ही होम मेकर दिव्या गुप्ता को लगता है कि उनके बच्चों की क्रिएटिविटी को जैसे पंख लग गए हैं.

वह कहती हैं, "मेरा 13 साल का बेटा घर पर ही पिज्जा का बेस बनाना सीख चुका है. अगर मैं किसी दिन खाना नहीं बना पाउंगी तो अब कम से कम वह कुछ बना तो सकता है."

उनकी 9 साल की बेटी अद्विका अपनी बार्बी डॉल्स के लिए खुद कपड़े सिलना सीख रही है.

जितने बच्चों से हमने बात की उनमें से ज्यादातर को इस लॉकडाउन में रहने से कोई दिक्कत नहीं है.

कविता कहती हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग ने असलियत में परिवारों को एकसाथ जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है.

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