क्रोना मां मारी को 500 शब्दों में लिखें
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हा 'ल में उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देवप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक गंगा जल की गुणवत्ता के नमूनों की जांच की तो पता चला कि पहली बार हरिद्वार में हरकी पैड़ी में गंगा के पानी की गुणवत्ता ए श्रेणी यानी कुछ साफ करके पीने योग्य की हो गई है, जो पहले यी श्रेणी यानी नहाने योग्य ही थी. 24 मार्च से जारी लॉकडाउन में क्या फर्क आया है, यह जानने के लिए सात अप्रैल से अध्ययन किया गया. इसके तहत देवप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक छह स्थानों पर गंगा के पानी के नमूने लिए गए. देहरादून स्थित केंद्रीय प्रयोगशाला में नमूनों की जांच के बाद 14 अप्रैल को इसके आंकड़े जारी किए ऋषिकेश से लेकर हरिद्वार तक फीकल कॉलीफार्म की मात्रा में भी भारी कमी आई है. बोर्ड के मुख्य पर्यावरण अधिकारी तथा केंद्रीय प्रयोगशाला के प्रभारी एस. एस. पाल ने बताया कि लॉकडाउन अवधि में गंगा के जल की गुणवत्ता में सुधार चौकाने वाला है. हरिद्वार से पहले ऋषिकेश में पशुलोक के नजदीक भी गंगा के पानी की गुणवत्ता ए श्रेणी की आई है, जो पहले वी में थी. वैसे तो, उत्तराखंड में गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट भी चल रहा है. इसके तहत गंगा तट से लगे 15 शहरों और कस्बों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण कार्य 90 फीसद पूरा हो चुका है. गंगा में गिर रहे गंदे जाले भी टैप किए गए हैं, इससे गोमुख से लेकर ऋषिकेश तक गंगा जल की गुणवत्ता पहले ही ए श्रेणी की हो गई थी. ऋषिकेश के बाद पशुलोक से लेकर हरिद्वार तक गंगा जल की गुणवत्ता की श्रेणी की थी. लेकिन 24 मार्च से लागू लॉकडाउन के बाद स्थिति बदल रही है. फैक्ट्रियां, होटल, आश्रम और धर्मशालाएं बंद हैं और उनकी गंदा पानी गंगा में जाने से रुका है. प्रदूषण बोर्ड के अध्ययन के मुताबिक हरिद्वार में बिंदुघाट और जगजीतपुर में गुणवत्ता वी श्रेणी की है, लेकिन यहां भी फीकल कॉलीफार्म (मल-मूत्र) में कमी दर्ज की गई. बिंदुघाट में फीकल कॉलीफार्म में पिछले माह के मुकाबले इस बार 25 और जगजीतपुर में 27 फीसद की कमी आई है. इस तरह कह सकते हैं कि मानव गतिविधियां घटने से प्रकृति को खुद के परिष्कार का मौका मिल गया है. इससे आगे कोई सबक लिया जाए तो गंगा वाकई फिर निर्मल हो सकेगी..
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