कोरोना महामारी का नया पहर कोरोना वैक्सीन पर निबंध
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भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल के त्रिशूर में 30 जनवरी 2020 को सामने आया था.
इसके अगले ही दिन यानी 31 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को वैश्विक चिंता की अंतरराष्ट्रीय आपदा घोषित किया था.
अब लगभग एक साल बाद और करीब एक करोड़ मामले सामने आने के बाद भारत शनिवार यानी 16 जनवरी 2021 से दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने जा रहा है.
भारत में कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में बीते एक साल का सफ़र उतार-चढ़ावों भरा रहा है. इस दौरान देश कभी गहरी निराशा में डूबा तो कभी इस महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में जीत की मज़बूत उम्मीदें बंधीं.
16 जनवरी का दिन इस लड़ाई में सबसे अहम पड़ाव साबित होने जा रहा है.
टीकाकरण की शुरुआत: सबसे अहम पड़ाव
आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च) के पूर्व निदेशक रहे वैज्ञानिक एके गांगुली इसे लड़ाई का सबसे अहम पड़ाव मानते हैं.
गांगुली कहते हैं, ''ये लंबी लड़ाई का पहला पड़ाव है जिसके साथ भारत की आर्थिक रिकवरी की आशाएं जुड़ी हुई हैं. अभी यह पहला चरण है और अगर हम इसमें कामयाब रहे और लोगों को वैक्सीन चुनने का विकल्प दे सके तो हम ये कह सकते हैं कि कोरोना के ख़िलाफ़ हमारी लड़ाई मज़बूत हो गई है.''
कोरोना वायरस संक्रमण का मामला सबसे पहले चीन के वुहान में सामने आया था. वुहान में दिसंबर 2019 में ही अधिकारियों ने नए वायरस के मामले की पुष्टि कर दी थी. फ़रवरी आतेआते दुनिया भर के देशों ने चीन से अपने नागरिकों को वापस लाना शुरू कर दिया था.
भारत भी 27 फ़रवरी को चीन से अपने 759 नागरिकों को एयरलिफ़्ट करके लाया था. साथ ही 43 विदेशी नागरिक भी चीन से लाए गए थे.
मार्च आते-आते दुनिया भर में वायरस तेज़ी से फैल रहा था. रोकथाम के लिए भारत ने छह मार्च को विदेश से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग शुरू की.अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने एक पखवाड़े पहले कहा था कि भारत और अमरीका मिलकर कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन विकसित कर रहे हैं.
पोंपियो के बयान पर किसी को ज़्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
अमरीका और भारत पिछले तीन दशक से एक संयुक्त वैक्सीन डिवेलपमेंट प्रोग्राम चला रहे हैं. इस प्रोग्राम को अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल है.
दोनों देश मिलकर डेंगू, आंतों की बीमारियां, इंफ़्लूएंजा और टीवी की रोकथाम पर साथ काम कर चुके हैं. दोनों देश डेंगू वैक्सीन के ट्रायल्स निकट भविष्य में करने वाले हैं.
दुनिया का वैक्सीन हब है भारत
भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन के दुनिया में सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर्स में होती है.देश में वैक्सीन बनाने वाली आधा दर्जन से ज़्यादा बड़ी कंपनियां हैं. इसके अलावा कई छोटी कंपनियां भी वैक्सीन बनाती हैं. ये कंपनियां पोलियो, मैनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी. मीजल्स, मंप्स और रूबेला समेत दूसरी बीमारियों के लिए वैक्सीन बनाती हैं.

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आधा दर्जन भारतीय फर्में कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटीं
अब तक़रीबन आधा दर्जन भारतीय कंपनियां कोविड-19 के वायरस के लिए वैक्सीन विकसित करने में जुटी हुई हैं.
इन कंपनियों में से एक सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया है. वैक्सीन के डोज़ के उत्पादन और दुनिया भर में बिक्री के लिहाज़ से यह दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन कंपनी है.
53 साल पुरानी यह कंपनी हर साल 1.5 अरब डोज़ बनाती है. कंपनी के दो बड़े प्लांट पुणे में हैं. हालांकि, कंपनी के नीदरलैंड्स और चेक रिपब्लिक में भी छोटे प्लांट्स हैं. इस कंपनी में करीब 7,000 लोग काम करते हैं.
कंपनी 165 देशों को कोई 20 तरह की वैक्सीन की सप्लाई करती है. बनाई जाने वाली कुल वैक्सीन का क़रीब 80 फ़ीसदी हिस्सा निर्यात किया जाता है. इनकी क़ीमत औसतन 50 सेंट प्रति डोज़ होती है. इस तरह से यह दुनिया की कुछ सबसे सस्ती वैक्सीन बेचने वाली कंपनियों में है.
क्या होती है लाइव एटेनुएटेड वैक्सीन?
अब कंपनी ने कोडाजेनिक्स के साथ गठजोड़ किया है. कोडाजेनिक्स एक अमरीकी बायोटेक कंपनी है. दोनों कंपनियां साथ मिलकर 'लाइव एटेनुएटेड' वैक्सीन (ऐसी वैक्सीन जिसमें वायरस को कमज़ोर करके लैब में वैक्सीन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, हालांकि यह वायरस जीवित होता है.) बनाएंगी. दुनिया भर की तकरीबन 80 कंपनियां इस काम में लगी हुई हैं.
इस वैक्सीन को नुक़सान पहुंचाने वाले गुणों को ख़त्म कर तैयार किया जाता है. लेकिन, इस वायरस को ज़िंदा रखा जाता है. पैथोजेन के कमज़ोर होने की वजह से ये बेहद हल्की बीमारी पैदा करते हैं क्योंकि इन्हें लैबोरेटरीज में कंट्रोल्ड माहौल में इस्तेमाल किया जाता है.
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