"कोरोना महामारी का शिक्षा पर प्रभाव "के विषय में दो शिक्षकों के बीच होने वाले संवाद को लिखिए।
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मेरी स्मृति में भारतीय जीवन, समाज, अर्थव्यवस्था और शिक्षा के क्षेत्र में अभी तक दो महत्वपूर्ण क्षण आए हैं। एक तो 1990 में उदारवादी अर्थव्यवस्था के लागू होने के बाद भारतीय जीवन में आया गुणात्मक परिवर्तन, दूसरा 2020 में कोरोना के आने के बाद हमारे जीवन एवं समाज में एक बड़े रूपांतरण का उद्घोष। पहला रूपांतरकारी क्षण अर्थव्यवस्था के प्रभाव, पूंजी की माया और गति के कारण घटित हुआ। दूसरा रूपांतरण मानव जीवन में कोरोना वायरस के रहस्यात्मक घातक प्रवेश के कारण संभव हो रहा है।
पहले रूपांतरण ने जीवन में हमारी गति बढ़ाई। भूमंडलीकरण, हवाई यात्राएं, साइबर स्पेस आदि विकसित हुए। दूसरे परिवर्तन ने गति को रोककर हमें स्थिर कर दिया है। कोरोना जनित यह समय असाधारण मानवीय संकट का समय है। संकट की यह घड़ी पूरी दुनिया को बदलती जा रही है।
सामाजिक जीवन, राजनीति, शिक्षा, अर्थव्यवस्था सबको इस कोरोना जनित समय के साथ खुद को समायोजित करना है। इस संकट के खत्म होने के बाद भी भय, व्याकुलता, घबराहट हमारे जीवन के तत्व रूप में शामिल हो हमारे सामाजिक जीवन के मूल चरित्र में तोड़-फोड़ करते रहेंगे।
शिक्षा खासकर उच्च शिक्षा के मूल चरित्र में भी कोरोना संकट के कारण बड़े परिवर्तन की संभावना है। विश्व के अनेक बड़े देश, जहां नामी-गिरामी विश्वविद्यालय हैं, वे आमने-सामने की शिक्षा (क्लासरूम टीचिंग) के विकल्प के रूप में डिजिटल शिक्षा के नए विकल्प विकसित कर रहे हैं। उन देशों में ऑनलाइन टीचिंग के नए संस्रोत विकसित किए जा रहे हैं। अपने यहां भी मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक इस नए परिवर्तन के बारे में बार-बार आगाह कर रहे हैं।
वह और उनकी टीम डिजिटल शिक्षण पद्धति का एक संवादी माहौल भारतीय उच्च शिक्षा में भी विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए हाल ही में उन्होंने एक नया एप ‘युक्ति’ लांच किया है, जिसमें हमारे नए भारत के छात्र, शोधार्थी, शिक्षक अपने ज्ञान एवं नवाचारी वृत्ति से इस कोरोना वायरस को पराजित कर सकेंगे।
इस लड़ाई में हमें अपने ‘ज्ञान एवं नवाचार’ को सक्षम हथियार के रूप में विकसित करना होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं मानव संसाधन मंत्रालय स्वयम एवं स्वयंप्रथा जैसे डिजिटल शिक्षा के प्लेटफॉर्म विकसित कर ही रहे हैं।
भारतीय उच्च शिक्षा वैसे भी 90 के दशक के बाद से ही खुद को रूपांतरित करने के काम में लगी है। नवउदारवादी अर्थव्यवस्था एवं उसके कारण बन रहे समाज में शिक्षा की जरूरतें पूरी करने के लिए यूजीसी ई-पाठशाला, स्मार्ट क्लासरूम, ऑडियो-वीडियो और डिजिटल आधारित ओपन शिक्षा के अनेक केंद्र विकसित करने लगी थी।
कोरोना संकट के समय हमारी जरूरतों ने उच्च शिक्षा व्यवस्था के मूल ढांचे को फिर से छिन्न- भिन्न कर दिया है। चूंकि अब समाज खुद भी वर्चुअल सोशल स्पेस में बदलने को बाध्य है, ऐसे में, शिक्षा में भी क्लासरूम की अवधारणा वर्चुअल होती जाएगी। हम धीरे-धीरे एक ऐसे समाज में बदलते जाएंगे, जहां सीधा संवाद लगभग खतम हो जाएगा। सब कुछ वर्चुअल, ऑनलाइन एवं डिजिटल टेक्नो संवादों के रूप में ही रह जाएगा।
संभव है कि उच्च शिक्षा का यह नया वर्चुअल रूपांतरण हमें बेहतरी की ओर ले जाए। संभव है, यह शिक्षा के परिक्षेत्र को ज्यादा नवाचारी, समाहारी एवं क्षमता विकास की दिशा में आगे बढ़ाए। किंतु भारत जैसे समाज में हमें गरीब, उपेक्षित और दूरस्थ क्षेत्रों में बसे समाजिक समूहों में इंटरनेट रखने, इस्तेमाल करने एवं सतत कनेक्टिविटी बनाए रखने पर जोर देना होगा।
शिक्षकों के एक बड़े वर्ग को भी डिजिटल माध्यमों के नवाचारी उपयोगों में खुद को दक्ष बनाना होगा। हमारी सरकार एवं शिक्षण संस्थाओं को भी उच्च शोध के लिए नवाचारी परियोजनाएं विकसित करनी होंगी। इसमें धन की बड़ी समस्या होगी, क्योंकि कोरोना हमारी अर्थव्यवस्था में संकट पैदा करेगा, जो अंतत: उच्च शिक्षा की हमारी गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।
उत्तर कोरोना समय में उच्च शिक्षा की हमारी कई चुनौतियां हैं। ऐसे में, एक तो हमें अपनी उच्च शिक्षा के सेमेस्टर, शिक्षण, परीक्षा के कार्य, मूल्यांकन की पद्धति में नए रूपांतरण लाकर अपनी उच्च शिक्षा को इस समय में अवस्थित कराना है। दूसरी, हमें दुनिया के बड़े उच्च शिक्षण संस्थाओं के समानांतर अपने को मजबूत एवं आकर्षक बनाना है। तीसरी, उच्च शिक्षा को समाहारी बनाए रखने के लिए भारतीय समाज के उपेक्षित एवं अति उपेक्षित समूहों को भी इस डिजिटल रूपांतरण से जोड़ना है।
ऐसा लगता है कि भविष्य में उच्च शिक्षा में शिक्षण एवं शोध जीवंत चेहरों की उपस्थिति से विहीन की बोर्ड एवं स्क्रीन में बदलता जाएगा। उस प्रक्रिया में मानवीय चेहरे सीधे नहीं रहेंगे। ऐसे में हमें एक वर्चुअल समुदाय की कल्पना कर उससे शैक्षणिक संवाद स्थापित करने की आदत डालनी होगी। शिक्षक भी होंगे, छात्र भी होंगे, पर दोनों स्क्रीन पर होंगे। अब शायद हमारी सामाजिकता भी काफी कुछ स्क्रीन पर टंग जाएगी, जिन्हें हम की बोर्ड से उतारेंगे और फिर स्क्रीन पर टांग देंगे।
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