कोरोना महामारी के दौर में मानसिक स्वास्थ्य णग पर ध्यान देना अकरी है। अपने विचार लिखिए |
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किसी वैश्विक महामारी का मनोवैज्ञानिक परिणाम सामाजिक ताने-बाने पर भी असर डालता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के पहले महानिदेशक ब्रॉक चिशहोम, जो कि एक मनोरोग चिकित्सक भी थे, की प्रसिद्ध उक्ति है : ‘बगैर मानसिक स्वास्थ्य के, सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य नहीं हो सकता है.’
उनके ये शब्द इस विचार का समर्थन करते हैं. सालों के रिसर्च के बाद इस बात को लेकर कोई शक नहीं रह गया है कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बुनियादी तौर पर और अभिन्न रूप से आपस में जुड़े हुए हैं.
आज की तारीख में हालांकि किसी समाचार को पढ़ने के लिए कोविड-19 को लेकर सही और फर्जी सूचनाओं की बाढ़ से होकर गुजरना पड़ता है, लेकिन इस जारी महामारी के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पहलू के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं हैं.
यह आश्चर्यजनक है क्योंकि वैज्ञानिकों ने यह दर्ज किया है कि ऐतिहासिक रूप से संक्रमणकारी महामारियां आम लोगों में चिंता और घबराहट को बड़े पैमाने पर बढ़ाती हैं.
नया रोग अपनी प्रकृति में अपरिचित होता है और इसके परिणामों के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. साथ ही यह अगोचर या अदृश्य होता है. इसकी ये सब खासियतें इसे गंभीर चिंता का स्रोत बना देती हैं.
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