Hindi, asked by Handwash333, 16 days ago

कोरोना और मानव जाति का भविष्य पर निबंध 150 शब्द

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Answered by randeep12352
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ग्लोबलाईज़ेशन या वैश्वीकरण का अगर हम निष्पक्ष तरीके से मौजूदा समय में आकलन करें तो पायेंगे कि — कोविड-19 महामारी के दुनिया में आने और फिर छा जाने से बहुत पहले ही – वैश्वीकरण की उदार व्यवस्था न सिर्फ़ धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही थी बल्कि अपने स्थान से ख़िसक रही थी. और इसका बीज बोया था दुनिया में महाशक्ति के तौर पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश में लगे अमेरिका और चीन के आपसी विवाद ने. सच ये है कि तक़रीबन दुनिया के हर देश में लागू हुए लॉकडाउन की इस प्रक्रिया ने उसी ग़ैर-वैश्विकरण के क्रम को मज़बूत करने का काम किया है. इसके बावजूद दूसरा और बड़ा सच ये है कि कोई भी देश, समाज, वर्ग और समूह इस लड़ाई को अकेले नहीं जीत सकता है. कोविड-19 नाम की इस आफ़त ने पूरी दुनिया को एक ऐसे अनदेखे – अंजाने समुद्र में फेंक दिया है, जिससे सुरक्षित बाहर निकलने के लिए हम सभी को तैराक़ी की क़ला सीखनी होगी.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या इससे सीख लेते हुए हमारी सरकारें अपनी प्राथमिकतों में बदलाव करेगी – क्या उनके लिए युद्ध में इस्तेमाल किए जाने हथियारों से ज़्यादा ज़रूरी अपनी जनता का स्वास्थ्य होगा, क्या वे जन-कल्याण को महत्व देंगे या वापिस से भू-राजनीतिक दबाव में आकर युद्धों के खेल में खो जाएंगे. कोविड-19 के हमले ने दुनिया के विकसित और विकासशील सभी देशों की कमज़ोर और अपर्याप्त जन-स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलकर रख दी है. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे – नदी के तेज़ बहाव को पार करते हुए हमें उसके तल पर जमे पत्थरों से मिलने वाली चोट का अंदाज़ा नहीं होता – हम सब इस वक्त़ बस इस तेज़ बहाव वाली नदी से ज़िंदा बच निकलने का रास्ता ही ढूंढ रहे हैं.

Answered by criskristabel
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पिछले चार महीनों में हमारी दुनिया एकदम बदल गई है. हज़ारों लोगों की जान चली गई. लाखों लोग बीमार पड़े हुए हैं. इन सब पर एक नए कोरोना वायरस का क़हर टूटा है. और, जो लोग इस वायरस के प्रकोप से बचे हुए हैं, उनका रहन सहन भी एकदम बदल गया है. ये वायरस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था. उसके बाद से दुनिया में सब कुछ उलट पुलट हो गया.

शुरुआत वुहान से ही हुई, जहां पूरे शहर की तालाबंदी कर दी गई. इटली में इतनी बड़ी तादाद में वायरस से लोग मरे कि वहां दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पहली बार लोगों की आवाजाही पर इतनी सख़्त पाबंदी लगानी पड़ी. ब्रिटेन की राजधानी लंदन में पब, बार और थिएटर बंद हैं. लोग अपने घरों में बंद हैं. दुनिया भर में उड़ानें रद्द कर दी गई हैं. और बहुत से संबंध सोशल डिस्टेंसिंग के शिकार हो गए हैं.

ये सारे क़दम इसलिए उठाए गए हैं, ताकि नए कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और इससे लगातार बढ़ती जा रही मौतों के सिलसिले को थामा जा सके.

इन पाबंदियों का एक नतीजा ऐसा भी निकला है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. अगर, आप राजधानी दिल्ली से पड़ोसी शहर नोएडा के लिए निकलें, तो पूरा मंज़र बदला नज़र आता है. सुबह अक्सर नींद अलार्म से नहीं, परिंदों के शोर से खुलती है. जिनकी आवाज़ भी हम भूल चुके थे.

कोरोना वायरस की महामारी ने ना जाने कितनों से उनके अपनों को हमेशा के लिए जुदा कर दिया है. हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बहुत नकारात्म प्रभाव पड़ रहा है. ना जाने कितनों का रोज़गार ख़त्म हुआ है. अर्थव्यवस्था पटरी पर कब लौटेगी ये भी कहना मुश्किल है. लेकिन इस महामारी ने एक बात साफ़ कर दी कि मुश्किल घड़ी में सारी दुनिया एक साथ खड़ी होकर एक दूसरे का साथ देने के लिए तैयार है. तो फिर क्या यही जज़्बा और इच्छा शक्ति हम पर्यावरण बचाने के लिए ज़ाहिर नहीं कर सकते? हमें उम्मीद है इस समय का अंधकार हम स्वच्छ और हरे-भरे वातारण से मिटा देंगे.

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