कोरोनावायरस एक विश्वव्यापी महामारी विश्व तथा भारत द्वारा उठाए गए निराकरण संबंधी उपायों की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए लगभग 1200शब्द में
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देशों ने अपने को समेट लिया और राष्ट्रीय सीमाएं कठोर हो गईं. इसके बाद आर्थिक तंगी और मंदी का दौर शुरू हुआ. राष्ट्रवाद का भाव अति-राष्ट्रवाद के चरम पर जा पहुंचा और यह दूसरे विश्वयुद्ध का कारण बना. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आपसी संबंधों वाली, एक दूसरे पर निर्भर और संस्थागत वैश्विक दुनिया का रूप बना. पिछले 75 सालों से उतार चढ़ाव के बाद भी यही वैश्विक व्यवस्था बरकरार रही.
लेकिन जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर स्टीव हैंकी का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने बिना पहले से प्लान के लॉकडाउन लागू कर दिया गया. वास्तव में मुझे लगता है कि मोदी यह जानते ही नहीं हैं कि 'योजना' का मतलब क्या होता है. यहां पढ़ें प्रोफ़ेसर हैंकी का नज़रिया.
कोरोना वायरस से उपजी महामारी दुनिया की मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को पहले जैसी स्थिति में करने की धमकी दे रही है. पहले विश्व युद्ध के बाद, दुनिया के देश आत्मकेंद्रित और सत्ता समर्थक हुए थे. कुछ राजनीतिक वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के समय में ऐसी ही दुनिया के उदय होने की भविष्यवाणी की है जिसमें दुनिया कहीं ज़्यादा सिमटी और संकीर्ण राष्ट्रवाद से भरी होगी. 'राष्ट्रों की वापसी' नई व्यंजना है. अर्थशास्त्री भूमंडलीकरण और मुक्त व्यापार के दिन लदने की बात कह रहे हैं.
इतनी निराशा कहां से उपजी है? महज 0.125 माइक्रो व्यास वाले कोरोना वायरस से, जो हमारी पलक का एक हज़ारवें हिस्से के समान है? शायद नहीं. एक वायरस ने नहीं, बल्कि दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली देशों ने, पूरी दुनिया के आत्मविश्वास को हिला कर रख दिया है. हूवर इंस्टिट्यूशन के अमरीकी इतिहासकार निएल फर्ग्यूसन ने इन दोनों देशों को 'चीमेरिका' कहते हैं.
बीते एक दशक या उससे भी थोड़े ज़्यादा समय से चीन और अमरीका ने आर्थिक संबंधों वाला मॉडल विकसित किया है, जिसकी तुलना फर्ग्यूसन निचेबेई (पिछली शताब्दी के अंत तक अमरीका-जापान के मजबूत आर्थिक संबंधों) से करते हैं. कोरोनावायरस ने इसी 'चीमेरिका' को काल्पनिक धारणा में बदल दिया है.