कोरोनावायरस के मानव जीवन में सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव
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कोरोना महामारी के बाद जीवनशैली में व्यापक बदलाव होंगे। यह महामारी मानव मन, जीवन और उसके पूरे भविष्य को गंभीर व दीर्घकालिक रूप से परिवर्तित करेगी। देती हैं। कोरोना का महासंकट विश्व को एक नई दिशा में मोड़ेगा, ऐसा भी कहा जा सकता हैं कोरोना कहर से मुक्ति के बाद लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन कभी भी पहले के जैसा नहीं हो पाएंगा। वर्तमान समय में कोरोना एक वैश्विक महामारी बन चुकी है और निश्चित तौर पर वह मानव मन पर लघुकालिक एवं दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ जाएगी। कुछ लोगों का जीवन तो सदैव के लिए ही बदल जाएगा। कोरोना के प्रभाव केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं हैं। यह प्रभाव सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक और सबसे प्रमुख आर्थिक तक विस्तृत हो गए हैं। कोरोना कहर के बीच हर व्यक्ति स्वयं को दूषित और दमघोंटू वातावरण में टूटा-टूटा सा अनुभव कर रहा है।
उसकी धमनियों में निराशा के विचारों, भय एवं आशंकाओं का रक्त संचरित हो रहा है। कोशिकाएँ अनिश्चितता एवं अनहोनी के धुएँ से जल रही हैं। फेफड़े संयम के बिना शुद्ध ऑक्सीजन नहीं ले पा रहें है, चोरों ओर अनिष्ट का दावानल पोर-पोर को जला रहा है, ऐसी स्थिति में इंसान का जीना समस्या है। वह इन जटिल हालातों में कैसे जीएं? लेकिन इन घोर अंधेरों के बीच भी भारत को विरासत में प्राप्त आध्यात्मिक मूल्यों एवं जीवनशैली को अपनाकर हम पुुन: स्वस्थ, उन्नत एवं खुशहाल जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं। आज के इस कोरोना कहर के वातावरण में सकारात्मक होना, ऊर्जावान होना एक बेहतरीन बात है और इसी के माध्यम से हम मानव जीवन को पूर्ववत बना सकेंगे। यह सकारात्मकता एवं ऊर्जस्विलता ही है, जिससे हम कोरोना महामारी को परास्त करेंगे और सामान्य जीवन की ओर भी बढेंग़े। इस संकटकालीन क्षणों में भी कई बार आपको ऐसा लगता होगा कि आप ऊर्जा से भरे हुए और परिपूर्ण है। आपका घट ऊर्जा से छलछला रहा है और उस समय आपके चेहरे पर एक विशिष्ट आभा होती है, आँखों में चमक होती है, मन में प्रसन्नता और हृदय में होती है कुछ कर गुजरने की तमन्ना। यही जिजीविषा कोरोना जैसे महासंकट से हमें बचा सकेंगी।
कोरोना ने हमारी सोच एवं आत्मविश्वास को कुंद कर दिया है, ऐसे लोगों को हम देखते हैं जिनका चेहरा बुझा-बुझा है। न कुछ उनमें जोश है न होश। अपने ही विचारों में खोए-खोए---, निष्क्रिय ओर खाली-खाली से, निराश और नकारात्मक तथा ऊर्जा विहीन। हाँ सचमुच ऐसे लोग पूरी नींद लेने के बावजूद सुबह उठने पर खुद को थका महसूस करते हैं, कार्य के प्रति उनमें उत्साह नहीं होता। ऊर्जा का स्तर उनमें गिरावट पर होता है। क्यों होता है ऐसा? कभी महसूस किया आपने? यह सब हमारी शारीरिक स्वस्थता के साथ-साथ मानसिक स्थिति का और विचारों का एक प्रतिबिंब है। जब कभी आप चिंतातुर होते हैं तो ऊर्जा का स्तर गिरने लग जाता है। उस समय जो अनुभूति होती है, वह है-शरीर में थकावट, कुछ भी करने के प्रति अनिच्छा और अनुत्साह। चिंता या तनाव जितने ज्यादा उग्र होते हैं, उतनी ही इन सब स्थितियों में तेजी आती है, किसी काम में तब मन नहीं लगता और ये स्थितियां कोरोना के संकट को कम करने की बजाय बढ़ाती है।
आज के कोरोना विभीषिका के समय में यह बहुत गंभीर मसला है कि निराशा और अवसाद में डूबे लोग सकारात्मकता और ऊर्जा की तलाश में हैं। ऐसे में बड़े पैमाने पर सकारात्मकता पढ़ाने वालों की जरूरत है, पर इनमें से अधिकतर की सबसे बड़ी समस्या है कि वे चीजों को सतही बनाकर पेश करते हैं। सकारात्मकता का अर्थ है- अपने जीवन जीने की दिशाओं को आशाभरी नजरों से देखना। यदि आप किसी कार्य के लिए अयोग्य हों तो आप उस काम को लेकर तब तक सकारात्मक नहीं हो सकते, जब तक कि आप उस काम को करने की योग्यता नहीं हासिल कर लेते। हां, यह बात जरूर है कि यदि आप कोरोना को मात देने के कार्य में अयोग्य हैं तो अपने को कमजोर मान निराशा या अवसाद में डूबने की जरूरत नहीं है। क्योंकि कोरोना को हराना आपके विश्वास पर ही निर्भर है।
अपनी ऊर्जा को सकारात्मक रूप देने और उसे बढाने के लिए आप इस तथ्य को अपने मन मस्तिष्क में बिठा लें कि सामान्यत: मनुष्य कोरोना को लेकर जो कुछ कर रहा है वह उसकी क्षमता से बहुत कम है। यदि वह ठान ले तो कोरोना को हारना ही होगा। जैन धर्म में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि मनुष्य अपने इसी शरीर में सर्वज्ञ बन सकता है और महानता का वरण कर सकता है। कुछ अन्य दार्शनिक इस विचार से असहमत रहे हैं। उनका कहना था कि हाड़ मांस के इस शरीर से मनुष्य सर्वज्ञ जैसी दिव्यता की स्थिति को प्राप्त कर ही नहीं सकता। पर जैन आचार्यों ने महावीर वाणी के आधार इस बात को दृढ़ता के साथ और सही ढ़ंग से प्रस्तुत किया कि इस ह्यूमन बॉडी में जो विराट शक्तियाँ भी छिपी हुई हैं, उनका सही उपयोग किया जाए तो नि:संदेह मनुष्य सर्वज्ञता और महानता जैसी स्थिति को प्राप्त कर सकता है और यही स्थिति कोरोना मुक्ति की सार्थक दिशा है। जैन मत के इस सिद्धांत का स्मरण कर आप अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाकर उसे ऊँचाई के स्तर तक ले जा सकते हैं। जीवन की समझ होना बेहद जरूरी है। उसके साथ कैरेक्टर और माध्यम की समझ भी उतनी ही जरूरी है, इसके लिये संयम, समर्पण, अनुशासन जैसे मूल्यों को जीना ही होगा।