CBSE BOARD X, asked by kingsk11, 2 months ago

कोरोना वायरस क्या मनुष्य की गलती का ही परिणाम है क्या इससे मानव जीवन का विनाश संभव है? इस विषय पर 150 शब्दों में अपने विचार प्रकट करें।​

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Answered by kunaldewangan
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Answer:

आज विश्व जिस कोरोना नामक महामारी का शिकार हो रहा है उसका मूल कारण मानव द्वारा प्रकृति के साथ की छेड़छाड़ ही है। अपने स्वार्थ के लिए मानव ने जल, हवा को जहां प्रदूषित किया वहीं पृथ्वी का दोहन इतना किया कि उसकी क्षमता भी कमजोर हो गई। मानव की लाभ और लालसा का परिणाम है कि जल, थल, आकाश सब प्रभावित हो चुके हैं। कोरोना महामारी इंसान को स्पष्ट संदेश दे रही है कि अगर अब भी मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ जारी रखी तो उसका व उसकी भावी पीढिय़ों का भविष्य अंधकारमय ही होगा।

हवा और पानी के बिना जीवन के बारे कोई कल्पना भी नहीं कर सकता और कटु सत्य यही है कि जल और हवा दोनों प्रदूषित हो चुके हैं।

अब लॉकडाउन के दौरान जो तथ्य सामने आ रहे हैं वह यही संकेत दे रहे हैं कि हवा और पानी शुद्ध रह सकते हैं, अगर मानव चाहे तो। पिछले दिनों जालंधर से धर्मशाला की पहाडिय़ां दिखाई दी थीं। आज की पीढ़ी के लिए यह एक अजूबे से कम नहीं था, जबकि बुजुर्गों का कहना है कि अतीत में यह आम बात थी। लॉकडाउन से पहले हवा की क्वालिटी इंडक्स 300 से लेकर 400 तक चला जाता था। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में हवा में बढ़ते प्रदूषण के कारण समाज व सरकार चिंतित थे। आज लॉकडाउन के कारण हवा की क्वालिटी इतनी बेहतर हो गई है कि वैज्ञानिकों का कहना है कि कम तीव्रता वाले भूकंप की पहचान होने लगी है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि भूकंप का शोर जमीन का एक अपेक्षाकृत लगातार होने वाला कंपन है जो आमतौर पर सिस्मोमीटर द्वारा दर्ज संकेतों का एक अवांछित घटक है।

इससे पहले के अध्ययनों में कहा गया था कि सभी तरह की मानव गतिविधियां ऐसे कंपन पैदा करती हैं जो अच्छे भूकंप उपकरणों से की गई पैमाइश को विकृत कर देती हैं। दुनिया के अनेक हिस्सों में जारी बंद की वजह से इन विकृतियों में कमी आई है और ‘भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान’ कोलकाता के एक प्रोफेसर सुप्रिय मित्रा समेत भूकंप वैज्ञानिकों का मानना है कि यह कहना गलत होगा कि धरती की सतह में अब ‘कंपन धीरे’ हो रहा है, जैसा कि मीडिया में आई कुछ खबरों में कहा गया है। बेल्जियम में आंकड़े दर्शाते हैं कि ब्रसेल्स में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए अपनाए गए बंद की वजह से मानव जनित भूकंपीय शोर में करीब 30 प्रतिशत की कमी आई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस शांति का मतलब यह है कि सतह पर भूकंप को मापने के पैमाने के आंकड़े उतने ही स्पष्ट हैं जितना कि उसी उपकरण को पहले धरती की सतह में गहराई पर रखने से मिलते थे। भारत में मित्रा इसी तरह के भूकंपीय आंकड़ों और अध्ययनों को देख रहे हैं। मित्रा ने ‘पीटीआई’ को बताया हम लॉकडाउन के दौरान के आंकड़ों को जुटाना चाहते थे और यह देखना चाहते हैं कि भूकंपीय शोर किस स्तर तक कम हुआ है।

उन्होंने कहा कि मानवजनित गतिविधियों के कारण सांस्कृतिक व परिवेशीय शोर एक हट्र्ज या उससे ऊपर है- और एक हट्र्ज वह मानक आवृत्ति है जिस पर भूकंप की ऊर्जा आती है। मित्रा ने कहा इसलिए अगर शोर ज्यादा है तो आम तौर पर भूकंपों का पता कम चलता है। बंद के फलस्वरूप क्या हुआ, वह बताते हैं कि गाडिय़ों की आवाजाही और मानव गतिविधियां कम हुईं जिसकी वजह से परिवेशीय शोर कम हुआ। उन्होंने कहा भूकंप का पता लगाने की सीमा कम हो गई है। इसलिए छोटे भूकंपों का भी ज्यादा पता चल रहा है। पंजाब में सतलुज और ब्यास का पानी पहले से काफी साफ हो गया है। इस कारण हरिके पत्तन में डाल्फिन मछलियां खेलती देखी जा रही हैं। वहीं उत्तराखंड में लॉकडाउन के कारण हरिद्वार, ऋषिकेश, टिहरी, देवप्रयाग और उत्तरकाशी के गंगा तट भी वीरान हो गए हैं। हर की पौड़ी समेत सभी गंगा घाटों पर गंगा आरती देखने के लिए श्रद्धालुओं पर पाबंदी लगा दी गई है।

गंगा में लोग न तो फूल डाल रहे हैं और न ही पूजा का सामान डाल रहे हैं। मोटर कारें लोगों के गैराज में बंद पड़ी हैं जिससे गंगा तट के इन शहरों की आबोहवा तरोताजा हो गई है और प्रदूषण बहुत कम हुआ है जिसका अच्छा असर पर्यावरण पर पड़ा है। हरिद्वार और ऋषिकेश के सभी उद्योग बंद पड़े हैं। जिन उद्योगों का रसायन युक्त गंदा पानी पहले गंगा में जाता था, अब नहीं जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार पूर्ण बंदी के चलते 12 दिनों में एक अध्ययन के अनुसार गंगा जल उत्तरकाशी से लेकर हरिद्वार तक से 40 से 50 फीसद तक साफ हुआ है। इतना ही नहीं गंगा जल के और स्वच्छ होने से यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों ने भी डेरा डाल दिया है। गंगा के तटों पर इन पक्षियों को आसानी से बड़े-बड़े समूह में देखा जा सकता है।

यही स्थिति यमुना सहित देश की अन्य नदियों की है। कोरोना वायरस बेशक लोगों की जानें ले रहा है और सारा विश्व इस महामारी से भयग्रस्त है। इसी कारण लॉकडाउन न हटाने की बात पर भी विचार हो रहा है। इस लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट भी आ गया है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि जब इंसान धन के लिए व भौतिक सुख-सुविधा के लिए हवा और जल को प्रदूषित कर रहा था और पृथ्वी का आवश्यकता से अधिक दोहन कर रहा था आज कोरोना वायरस ने इंसान को उसी को उसके कम•ाोर पक्ष से भली भांति परिचित कर दिया है। मोटर, गाड़ी और बैंक बैलेंस सब कुछ इंसान के पास है, लेकिन वह इस्तेमाल नहीं कर सकता। विश्व का सबसे विकसित देश अमेरिका जो सैनिक, वैज्ञानिक व आर्थिक दृष्टि से सबसे मजबूत है आज प्रकृति के आगे बेबस है।

हमारे पूर्वजों ने तो शुरू से हमें समझाया था कि प्रकृति से तालमेल कर चलने वाला सुखी है। प्रकृति परमार्थ की प्रतीक है, इंसान परमार्थ को भूलकर स्वार्थसिद्धि को लग गया है। प्रकृति ने एक ही झटके में समझा दिया है कि स्वार्थ की राह आत्मघाती है, परमार्थ ही जीवन का आधार है। कोरोना का हमारे जीवन पर एक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, अगर मानव समझ ले। मानव ने अगर अब भी जल, हवा, जंगल से खिलवाड़ जारी रखा और पृथ्वी का दोहन अपने स्वार्थ के लिए करता रहा तो फिर आने वाला कल अंधकारमय ही होगा और हमारी भावी पीढिय़ां हमें इसके लिए कभी माफ नहीं करेंगी।

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