कोरोना वायरस ,
सकारात्मक प्रभाव
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कोरोना महामारी ने जहां बड़े पैमाने पर विनाश किया तथा लाखों की संख्या में लोगों की जान भी चली गई, वहीं इसके कुछ ऐसे सकारात्मक पक्ष भी हैं जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि गंगा का पानी गुणवत्ता की दृष्टि से साफ होकर पीने योग्य हो जाएगा अथवा जालंधर से धौलाधार की बर्फ से लकदक पहाडि़यां देखी जा सकेंगी। दिल्ली वाले अब साफ नीला आकाश देख रहे हैं, जबकि वे प्रदूषण के कारण क्षितिज में तूफान व धुंधले आकाश के अभ्यस्त हो गए थे। पूरे विश्व में कोरोना ने भारी तबाही मचाई है और जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ है, वह लोगों की बड़े पैमाने पर मौतें हैं। अमरीका जैसा देश जो कभी भी इतना मजबूर नहीं दिखा, वह लोगों की बड़े पैमाने पर मौतें देख रहा है तथा भारत जैसे देश, जिसके लिए अमरीका कभी भी उपकारी नहीं रहा, उसके सामने दवाओं के लिए भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। विश्व भर में अब चिकित्सा अनुसंधान के लिए बड़ी चुनौती यह है कि कोरोना जैसी महामारी से कैसे निपटा जाए?
इस वायरस के बारे में विश्व को बहुत कम जानकारी है तथा इसका उपचार भी कोई नहीं है। पूर्व और पश्चिम दोनों ही अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस धमकी से चकित रह गए कि अगर भारत ने कोरोना के इलाज में सफल साबित हुई दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन उसे नहीं दी तो बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा। यह बात समझ से परे है कि इतना बड़ा राष्ट्र एक ऐसे छोटे देश को अपना बाहुबल दिखा रहा था जिसे अभी तकनीकी दुनिया में बहुत कुछ करना बाकी है। अंततः भारत ने यह दवा अमरीका को दे दी और ट्रंप इस बात से खुश हैं कि अब अमरीका भी विश्व की तरह भारत के साथ मिलकर इस महामारी की वैक्सीन तैयार करने की दौड़ में शामिल हो सकेगा। यह बात पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आई कि भारत चिकित्सा अनुसंधान के लिहाज से अग्रणी देशों में शामिल है। कोरोना के कारण भारत और अमरीका अब साथ मिलकर काम करेंगे क्योंकि इस महामारी से निपटने के लिए इन देशों की चिंताएं साझी हैं। इससे विश्व का भी कल्याण होगा। साझे लक्ष्य के लिए दो देशों का साथ आना अब संभव हुआ है, साथ ही भारत की योग्यता और शांतिपूर्ण परियोजनाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय जागरूकता भी फैलेगी। अब हमारे पास यह अवसर भी है कि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोई बड़ा ओहदा पा सकेंगे और अपनी भूमिका निभा सकेंगे, जो कि अभी तक नगण्य मानी जाती रही है।
कोरोना वायरस महामारी की वजह से पूरी दुनिया में लोग घरों में बंद हैं. इसका धरती यह सकारात्मक असर पड़ा है. अस्थायी रूप से ही सही लेकिन दुनिया की हवा साफ हो गई. दुनिया में सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली जहां पर प्रदूषण की वजह से धुंध छाया रहता है, आसमान साफ दिख रहा है. ऐसा हम नहीं बल्कि वैज्ञानिक कह रहे हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वायुमंडल वैज्ञानिक बैरी लेफर ने बताया कि 2005 से उपग्रह के जरिये वातावरण में नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड के स्तर को मापा जा रहा है. उन्होंने आगे बताया कि भारत और चीन में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आई है. तीन अप्रैल को जालंधर के लोग जब उठे तो उन्होंने ऐसा दिन पिछले 20 सालों में नहीं देखा था क्योंकि करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित बर्फ से ढंकी हिमालय की पहाड़ियां साफ दिखाई दे रही थी.
उत्तर-पूर्वी अमेरिका (इसी इलाके में न्यूयॉर्क, बोस्टन जैसे शहर हैं) में भी वातावरण में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के प्रदूषण में 30 प्रतिशत की कमी आई है. इटली की राजधानी रोम में पिछले साल मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के मुकाबले इस साल इस अवधि में प्रदूषण के स्तर में 49 प्रतिशत तक की गिरावट आई है और आसमान में तारे और साफ दिखाई दे रहे हैं. Also Read - Coronavirus Vaccination: कौन हैं मनीष कुमार जिन्हें सबसे पहले लगा कोरोना का टीका, बोले- वैक्सीन लगते ही...
लोग उन स्थानों पर भी जंगली जानवरों को देख रहे हैं जहां पर आमतौर पर ऐसा नहीं देखा जाता है. अमेरिका के शिकागो शहर के मिशिगन एवेन्यू और सैन फ्रांसिस्कों के गोल्डन गेट ब्रिज के पास काइयोट (उत्तरी अमरीका में पाया जाने वाला छोटा भेड़िया) देखा गया है. इसी प्रकार चिली की राजधानी सेंटियागो की सड़कों पर तेंदुआ घूमता हुआ नजर आया. वेल्स में बकरियों ने शहर पर कब्जा कर लिया. भारत में भूखे बंदर लोगों के घरों में घुसकर फ्रीज से खाना निकाल पर खाते हुए देखे गए हैं. Also Read - क्या कोरोना वैक्सीन से हुई कोई मौत, पीएम मोदी ने कन्फर्म कर टिप्स भी दिए, पढ़ें बड़ी बातें
ड्यूक विश्वविद्यालय के संरक्षणवादी वैज्ञानिक स्टुअर्ट पिम्म ने कहा, यह हमें असाधारण तरीके से यह विचार करने का मौका दे रहा है कि हम इंसानों ने कैसे इस ग्रह को तहस-नहस कर दिया है. यह हमें मौका देता है कि जादू की तरह हम देखें कि दुनिया कैसे बेहतर हो सकती है.’’ स्टैनफोर्ड वुड्स पर्यावरण संस्थान के निदेशक क्रिस फिल्ड ने इनसानों के घर में रहने की वजह से पारिस्थितिकी में आने वाले बदलाव का आकलन करने के लिए वैज्ञानिकों को एकत्र किया है.
उन्होंने कहा, बाकी लोगों की तरह वैज्ञानिक भी घरों में बंद हैं लेकिन वे किट पतंगों, मौसम की परिपाटी, शोर और प्रकाश प्रदूषण में होने वाले अप्रत्याशित बदलाव का पता लगाने के लिए उत्सुक हैं. इटली सरकार समुद्री खोज पर काम कर रही है ताकि लोगों के नहीं होने पर समुद्र में होने वाले बदलाव का अध्ययन किया जा सके.’’
फिल्ड ने कहा, कई तरीकों से एक तरह से हमने धरती की प्रणाली को तबाह कर दिया है और हम देख रहे हैं कि धरती कैसी प्रतिक्रिया करती है.’’
हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष डैन ग्रीनबाउम ने बताया कि शोधकर्ता पारंपरिक वायु प्रदूषक जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइट, धुंध और छोटे कण में आई नाटकीय कमी का आकलन कर रहे हैं. इस तरह के प्रदूषकों से दुनिया भर में करीब 70 लाख लोगों की मौत होती है.
नासा के वायुमंडल वैज्ञानिक बैरी लेफर ने आगे कहा कि पिछले पांच साल के आंकड़ों की तुलना में इस साल मार्च में पेरिस में 46 प्रतिशत, बेंगलुरु में 35, सिडनी में 38 प्रतिशत, लॉस एंजिलिस में 26 प्रतिशत, रियो डी जेनिरियो में 26 प्रतिशत और डर्बन में नौ प्रतिशत तक प्रदूषण के स्तर में गिरावट आई. लेफर ने बताया, यह हमें झलक दिखाता है कि अगर हमने प्रदूषण फैलाने वाली कारों पर रोक लगा दी तो क्या हो सकता है.’’