क्रिस्टलीय ठोस एवम् अक्रिस्टलीय ठोस में अंतर स्पष्ट करें?
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1. क्रिस्टलीय ठोस (crystalline solids) :
क्रिस्टलीय ठोसो में अवयवी कणों (अणु , परमाणु या आयन) की एक निश्चित तथा नियमित व्यवस्था होती है।
अवयवी कणों की यह व्यवस्था दीर्घ परासी होती है अर्थात कणों की व्यवस्था का एक निश्चित पैटर्न होता है तथा इस पैटर्न की सम्पूर्ण क्रिस्टल में समान अंतराल पर पुनरावृत्ति होती है।
उदाहरण के लिए NaCl , KCl , Na2SO4 , K2CO3 , Fe , Au , Cu , क्वार्ट्ज आदि।
क्रिस्टलीय ठोसों के गलनांक निश्चित होते है तथा उनके शीतलन वक्र असंतत होते है।
क्रिस्टलीय ठोस वास्तविक ठोस (true solids) कहलाते है।
क्रिस्टलीय ठोस साधारणतया लघु क्रिस्टलों की बहुत अधिक संख्या का समूह होता है।
क्रिस्टलीय ठोस विषम दैशिक (anisotropic) प्रकृति के होते है।
2. अक्रिस्टलीय ठोस (amorphous solids) :
अक्रिस्टलीय ठोसों में अवयवी कणों की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं होती तथा न ही कोई निश्चित ज्यामिति और आकृति होती है।
इन ठोसों में अवयवी कणों की व्यवस्था लघु परासी होती है।
इन ठोसों में अवयवी कणों की व्यवस्था का एक अनियमित पैटर्न होता है जिनकी पुनरावृति कम दूरी तक ही पायी जाती है।
उदाहरण के लिए काँच , प्लास्टिक , रबर , रेजिन आदि।
अक्रिस्टलीय ठोसों के गलनांक निश्चित नहीं होते है। इनके शीतलन वक्र सतत होते है।
अक्रिस्टलीय ठोसों की संरचना द्रवों के समान होती है , इनमें द्रवों के समान बहने (प्रवाह) की प्रकृति होती है लेकिन प्रवाह बहुत ही मंद होता है इसलिए इन्हें अतिशितित द्रव (supercooled liquid) अथवा आभासी ठोस (pseudo solid) कहा जाता है।
अक्रिस्टलीय ठोस समदैशिक प्रकृति के होते है।
कुछ अक्रिस्टलीय ठोसों को पिघलाकर धीरे धीरे ठण्डा होने पर वे क्रिस्टलीय ठोस में परिवर्तित हो जाते है।