कोरी सहानुभूति दिखाने के स्थान पर निष्ठुर अनुकंपा करना अधिक अच्छा
है।
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सहानुभूति में हम दूसरे के दुख को पहचानकर उसे दूर करने के बारे में सोचते हैं, लेकिन खुद दुखी नहीं होते। इसमें दया करने से अपनी श्रेष्ठता का अहंकार पनपता है। समानुभूति यानी दूसरा जैसा महसूस कर रहा है, वैसा महूसस करना। इसमें संवेदना का व्यवहार नहीं, व्यवहार में संवेदना झलकती है। दोनों में संवेदना की गहराई का फर्क है।
अतिशय व्यक्तिवादिता से पीड़ित जिस हिंसक समाज में हम आज जी रहे हैं, वह आक्रामक स्पर्द्धा को बढ़ावा देकर व्यक्ति को व्यक्ति के खिलाफ टकराव की स्थिति में खड़ा कर देता है। हम ऐसे संवेदनहीन समूह में बदलते जा रहे हैं जहां हर ‘दूसरा’ हमारा प्रतिद्वंद्वी है, उसका सुख-दुःख हमें नहीं व्यापता। मानवीय संबंधों में बिखराव के पीछे तो यह है ही, राष्ट्रों के बीच टकराव के पीछे भी कुछ हद तक यह जिम्मेदार है।
समानुभूति का मतलब है, ‘दूसरा जैसा महसूस कर रहा है, वैसा ही महसूस करना’। इसके लिए स्वयं को दूसरे के स्थान पर रखकर सोचना होता है। सहानुभूति में हम दूसरे के दुख को पहचानकर उसकी मदद करने की सोचते हैं। हमारा स्वयं दुखी होना जरूरी नहीं है। सहानुभूति में एक दूरी है, जबकि समानुभूति में स्वयं वही भाव महसूस करने के कारण बराबरी है। सहानुभूति में अक्सर दया करने से अपनी श्रेष्ठता का अहंकार पनपता है। सहानुभूति से आप किसी गरीब की मदद कर सकते हैं किंतु जिसने अकेला बेटा खो दिया हो उसके सामने अपने बेटे की उपलब्धियों और वैभव की चर्चा न करना समानुभूति का उदाहरण है। इसके लिए हृदय की विशालता चाहिए, मुंह का बड़बोलापन नहीं। इसमें ‘अन्य’ का बोध तिरोहित हो जाता है और करुणा का जन्म होता है।
दूसरे की भावनाएं समझने और बांटने का मानवीय संबंधों को मधुर और स्थायी बनाए रखने में अपनी भूमिका से कौन इनकार कर सकता है। मित्रता की शुरुआत भी अक्सर इसी विश्वास के साथ होती है कि अगला व्यक्ति हमारी भावनाओं-विचारों को, बिना निर्णायक बने बांट-समझ सकेगा।
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कोरी सहानुभूति मतलब किसी के दुख आदि की गभीर अनुभूति। अर्थात किसी दूसरे के दुख को दूर करने के बारे में सोचना तथा दूर करना। लेकिन कभी-कभी दूसरों के भलाई के लिए सहानुभूति दिखाने के बजाय निष्ठुर अनुकंपा करना अधिक अच्छा होता है। जैसे कि कभी काका कालेलकर जी ने पाठ 'निष्ठुर अनुकंपा' में हमें बताया है कि कैसे एक दूरदर्शी मेहमान ने आकर खानदान की झूठी शान दिखाने वाले चार भाइयों को सही मार्ग दिखाने के लिए उनका एकमात्र आमदनी का जरिया सहिजन के पेड़ को जब काटा तब जाकर वे कामकाज में लगे और धीरे-धीरे उनके हालात में सुधार आया। इससे पता चलता है कि सहानुभूति हमेशा अच्छा नहीं होता। किसी के भलाई के लिए कभी-कभी निष्ठुर अनुकंपा करना या फिर दिखाना भी अधिक अच्छा होता है। कहानी में अगर भाइयों के दशा पर मेहमान सहानुभूति दिखाते तो उनमें परिवर्तन कभी नहीं आता बल्कि आगे जाकर हालात और भी खराब होता। इससे यह साबित होता है कि कुरी सहानुभूति दिखाने के स्थान पर कभी-कभी निष्ठुर अनुकंपा करना भी अधिक अच्छा होता है।