कार्तिक के आते ही भगत 'प्रभाती' गाया करते थे।
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कार्तिक मास में बालगोबिन भगत की प्रभाती शुरू हो जाती थी। यह प्रभाती कार्तिक मास से शुरू होकर फाल्गुन मास तक चलती थी। वे सुबह अँधेरे में उठते। गाँव से दो मील नदी पर स्नान करने जाते थे। वापसी में गाँव के पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खंजड़ी बजाते हुए गीत गाते रहते थे। वे गीत गाते समय अपने आस-पास के वातावरण को भूल जाते थे। उनमें माघ की सर्दी में भी गीत गाते समय इतनी उत्तेजना आ जाती थी कि उन्हें पसीना आने लगता था, परंतु सुनने वालों का शरीर ठंड के कारण कँपकँपा रहा होता था।
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