क्रोध का सकारात्मक रूप
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क्रोध करना मनुष्य की एक स्वभाविक क्रिया है। जब कोई कार्य उसकी इच्छा के विरूद्ध हो या किसी ने उसका अहित किया हो, तो वह क्रोध करता है। क्रोध के माध्यम से वह अपने मन में व्याप्त गुस्से को बाहर निकलता है। इसके कुछ समय पश्चात वह शांत हो जाते हैं। परंतु उस क्षणिक समय में वह ऐसा अनर्थ कर बैठता है कि उसे जीवनभर का पछतावा मोल लेना पड़ता है। क्रोध करना बुरा नहीं है परन्तु उस समय अपने पर से नियंत्रण खो देना बुरा है। लोग क्रोध की स्थिति में किसी की जान तक ले लेते हैं। परन्तु जब उसे होश आता है, तो बात हाथ से बाहर हो जाती है। इसलिए प्राचीन काल से ही इसे मनुष्य का शत्रु माना जाता रहा है। इस स्थिति में मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है। वह पागलों के समान कार्य कर बैठता है। यही कारण है कि क्रोध न करने की सलाह दी जाती है।
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