"क्रोध शांति भंग करने वाला मनोविकार है। एक का क्रोध दूसरे में भी क्रोध का संचार करता है।
जिसके प्रति क्रोध प्रदर्शन होता है वह तत्काल अपमान का अनुभव करता है और इस दुःख पर
उसकी त्योरी भी चढ़ जाती है। यह विचार करने वाले बहुत थोड़े निकलते हैं कि हम पर जो क्रोध
प्रकट किया जा रहा है, वह उचित है या अनुचित।"इसका गद्यांश कक्या है
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karoth is the heading of pheragraph
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क्रोध शांतिभंग करनेवाला मनोविकार है। एक का क्रोध दूसरे में भी क्रोध का संचार करता है। जिसके प्रति क्रोध प्रदर्शन होता है वह तत्काल अपमन का अनुभव करता है और इस दु:ख पर उसकी भी त्योरी चढ़ जाती है। यह विचार करनेवाले बहुत थोड़े निकलते हैं कि हम पर जो क्रोध प्रकट किया जा रहा है, वह उचित है या अनुचित।
क्रोध शांति भंग करने वाला मनोविकार है। एक का क्रोध दूसरे में भी क्रोध का ही संचार करता है। जिसके प्रति क्रोध प्रदर्शन होता है वहां तत्काल अपमान का अनुभव करता है और इस दुख भर उसकी तैयारी भी बढ़ जाती है। यह विचार करने वाले बहुत थोड़े निकलते हैं कि हम पर जो क्रोध प्रकट किया जा रहा है वहां उचित है या अनुचित इसी से धर्म नीति और शिष्टाचार तीनों में क्रोध के विरोध का उपदेश पाया जाता है संत लोग तो खलों के दुर्वाचन सहते ही हैं । दुनियादार लोग भी ना जाने कितनी ऊंची नीची बचाते हैं। सभ्यता के व्यवहार में भी क्रोध नहीं तो क्रोध के चिन्ह दबाए जाते हैं। इस प्रकार का प्रतिबंध समाज की सुख शांति के लिए परम आवश्यक है। पर प्रतिबंध की भी सीमा है यहां परपिडकोमुख क्रोध तक नहीं पहुंचता। पंचतंत्र और हितोपदेश में ऐसी बहुत सारी कहानियां है जिसमे कहानीकार ने यह दर्शाया है की क्रोध नाश का कारण है । क्रोधी व्यक्ति अंधा होता है। वह अपना नफा नुकसान नहीं देखता।।
#SPJ3