क्रिया के भेद बताए।
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कर्म जाती तथा रचना के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद होते है :
अकर्मक क्रिया:
जिस क्रिया का फल कर्ता पर ही पड़ता है वह क्रिया अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इस क्रिया में कर्म का अभाव होता है। जैसे : श्याम पढता है।
इस वाक्य में पढने का फल श्याम पर ही पड़ रहा है। इसलिए पढता है अकर्मक क्रिया है। जिन क्रियाओं को कर्म की जरूरत नहीं पडती या जो क्रिया प्रश्न पूछने पर कोई उत्तर नहीं देती उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं।
अथार्त जिन क्रियाओं का फल और व्यापर कर्ता को मिलता है उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
अकर्मक क्रिया के उदाहरण :
राजेश दौड़ता है।
सांप रेंगता है।
पूजा हंसती है।
मेघनाथ चिल्लाता है।
रावण लजाता है।
राम बचाता है।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरणों में देख सकते हैं कि दौड़ता हैं, रेंगता है, हंसती है, चिल्लाता है, बचाता है, आदि वाक्यों में कर्म का अभाव है एवं क्रिया का फल करता पर ही पड़ रहा है। अतः यह उदाहरण अकर्मक क्रिया आएंगे।
सकर्मक क्रिया:
जिस क्रिया में कर्म का होना ज़रूरी होता है वह क्रिया सकर्मक क्रिया कहलाती है। इन क्रियाओं का असर कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है। सकर्मक अर्थात कर्म के साथ।
जैसे : विकास पानी पीता है। इसमें पीता है (क्रिया) का फल कर्ता पर ना पडके कर्म पानी पर पड़ रहा है। अतः यह सकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया के उदाहरण :
रमेश फल खाता है।
सुदर्शन गाडी चलाता है।
मैं बाइक चलाता हूँ।
रमा सब्जी बनाती है।
सुरेश सामान लाता है।
जैसा कि आप ऊपर दिए गये उदाहरणों में देख सकते हैं कि क्रिया का फल कर्ता पर ना पडके कर्म पर पड़ रहा है। अतः यह उदाहरण सकर्मक क्रिया के अंतर्गत आयेंगे।