कार्यपालिका के प्रमुख प्रकारो का वर्णन कीजिए
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प्राचीन समय में नाममात्र तथा वास्तविक कार्यपालिका में कोई अन्तर नहीं था। शासन की सारी शक्तियां राजा के पास होती थी और वही अकेला समस्त शक्तियों का प्रयोग करता था। लेकिन 1688 की शानदार क्रान्ति के बाद इंग्लैण्ड में मन्त्रिमण्डल नाम की संस्था के जन्म के साथ ही कार्यपालिका के दो रूप उभर गएं शासन की वास्तविक शक्तियों मन्त्रिमण्डल की संस्था के हाथ में चली गई और नाममात्र की शक्तियां सम्राट के पास रह गई। नाममात्र की कार्यपालिका के लिए संविधानिक कार्यपालिका का भी प्रयोग किया जाता है। संसदीय शासन प्रााली वाले सभी देशों में इस प्रकार की कार्यपालिकाएं हैं। भारत में राष्ट्रपति नाममात्रकी कार्यपालिका है और प्रधानमन्त्री वास्तविक। नाममात्र की कार्यपालिका वह कार्यपालिका होती है जिसमें शासन की शक्तियों का राष्ट्राध्यक्ष के नाम पर वास्तविक प्रयोग मन्त्रीमण्डल या प्रधानमन्त्री ही करता है, क्योंकि वही वास्तविक कार्यपालक होता है। राष्ट्राध्यक्ष तो रबड़ की मुहर या ध्वजमात्र होता है। उसे अपने अधिकारों और शक्तियों का स्वतन्त्र प्रयोग करने की अनुमति नहीं होती। भारत में राष्ट्रपति शासन सम्बन्धी जो भी कार्य करता है, वह मन्त्रिमण्डल की सलाह से ही करता है। संसदीय शासन प्रणालियों में ही वास्तविक और नाममात्र की कार्यपालिका का अन्तर देखने को मिलता है, अध्यक्षात्मक सरकारों में नहीं। अध्यक्षात्मक सरकारों में तो राष्ट्राध्यक्ष ही वास्तविक कार्यपालक होता हे, वहां नाममात्र की कार्यपालिका का सर्वथा अभाव होता है। अपने कार्यों के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है।