Hindi, asked by dikshita4114, 2 months ago

कारखाने में कपड़े कैसे बनाऐ जाते है​

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Answered by luckygoyal0235
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Answer:

तालिका से ज्ञात होता है मात्र 10 प्रतिशत महिलाओं को पूरे वर्ष काम मिल पाता है और २ प्रतिशत महिलाओं को तो महीने में सिर्फ २ या 3 दिन या फिर एक सप्ताह ही काम मिल पाता है। काम की अनिश्चितता तथा प्रतियोगिता के कारण इन महिला कामगारों को कम से कम दरों पर, जितने भी दिन काम मिले, करना पड़ता है। इन घरेलू कामगारों को काम की प्रतीक्षा करनी पड़ती है ठेकदार या उप-प्रतिनिधि या तो स्वयं काम लाता है अथवा कामगारों को संदेश भिजवा देता है कि वे सामग्री ले जाये। यदि लम्बे समय तक कोई काम नहीं आता तो कामगार ठेकेदार के पास जाते है। महिलाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्य किये जाते हैं। उन सबमें समानता यह होती है कि उन्हें अपनी उँगलियों से काम लेना होता है, वे सिर्फ कैंची, सुई धागा यह पेंसिल जैसे औजार ही प्रयोग में लाती है। समस्त कार्य को एकाग्रचित होकर धर्यपूर्वक करना होता है, वस्त्र निर्यात उद्योग में जो कार्य घरेलू महिला कामगारों द्वारा निष्पादित करवाये जाते हैं। उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। यह सारा काम तिजारती (पीस रेट) पर घरों में कराया जाता है।

कटाई

इसमें मुख्यतः कपड़ों के किनारे काटने का काम किया जाता है जो 0.50 से २.00 रूपये प्रति कपड़े के हिसाब से किया जाता है। जिससे उनकी एक दिन की औसत कमाई 10 रूपये से लेकर 25 रूपये तक होती है।

कढ़ाई

कढ़ाई कई प्रकार की होती है। सबसे अधिक थकान वाला तब काम होता है वस्त्रों के बड़े भाग को कढ़ाई से भरना होता है। दूसरे प्रकार की कढ़ाई में वस्त्रों पर क्रोशिये की कढ़ाई की जाती है। दिन में आठ घंटें काम करने पर भी मुश्किल से 20.035 रूपये कमा पाती है।

खाका खींचना

वस्त्रों पर कढ़ाई करने से पूर्व खाका खींचा जाता है। इस कार्य में कामगारों को रंग तथा ट्रेसिंग पेपर अपनी ओर से खरीदने पड़ते हैं। इस काम को करने के लिए उन्हें लम्बे समय तक काम करना पड़ता है तब भी उनके एक महीने की औसत आय 500 रूपये से अधिक नहीं होती ।

बटन टांकना

कपड़ों के निर्धारित स्थानों पर कई प्रकार के बटन तथा हुक लगाये जाते हैं। प्रति बटन 25 पैसे दिये जाते है। कम से कम 20 रूपये प्रति दिन कमाने के लिए महिलाओं को एक दिन में 100 बटन लगाने होंगे।

अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिता के कारण वस्त्र उद्योग को सस्ते श्रम तथा घरेलू उत्पादकों पर निर्भर रहना पड़ता है। घरेलू काम के साथ-साथ पीस कार्य करने पर कई बार महिलाएं दुविधा में पड़ जाती है कि पहले घर की जिम्मेदारी निभाए या आर्थिक कार्यों को पहले पूरा करे। उन्हें तनाव में काम करना पड़ता है। जिससे समय के साथ-साथ उनका काम भी प्रभावित होता है। अंतः में कहा जा सकता है ही अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिता के बढ़ने से महिलाएं एवं लड़कियों का उपयोग अधिक किया जाने लगा है।

गारमेंट उद्योग

यूँ तो गारमेंट उद्योग एक शताब्दी पुराने टैक्सटाइल उद्योग का ही एक हिस्सा है लेकिन यह एक अलग उद्योग के रूप में अपनी पहचान देश विभाजन के बाद ही बना पाया। हर दिन आदमी की पॉकेट और मन में खास जगह बनाने वाले इस उद्योग की सफलता के पीछे सरकार की उदारवादी ओद्योगिक नीतियाँ भी है। 1975 में सरकार ने उन्हीं नीतियों के तहत अनौपचारिक और लघु इकाई वाले गारमेंट सैक्टर को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया। इस सरकारी फैसले से गारमेंट उद्योग ने अन्तराष्ट्रीय बाजार में अपनी अलग व महत्वपूर्ण छाप छोड़ी

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