केरल ने किस प्रकार ka एक mahatva purn बदलाव किया
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भारतीय संघ का अविभाज्य अंग होने के कारण केरल की आर्थिक व्यवस्था को राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से पृथक करना उचित नहीं है। फिर भी केरल की आर्थिक व्यवस्था की अपनी विशेषताएँ हैं। मानव संसाधन विकास की आधारभूत सूचना के अनुसार केरल की उपलब्धियाँ प्रशंसनीय है। मानव संसाधन विकास के बुनियादी तत्त्वों में उल्लेखनीय हैं - भारत के अन्य राज्यों की तुलना में आबादी की कम वृद्धि दर, राष्ट्रीय औसत सघनता से ऊँची दर, ऊँची आयु-दर, गंभीर स्वास्थ्य चेतना, कम शिशु मृत्यु दर, ऊँची साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा की सार्वजनिकता, उच्च शिक्षा की सुविधा आदि आर्थिक प्रगति के अनुकूल हैं। परन्तु उत्पादन क्षेत्र में मंदी, ऊँची बेरोज़गारी दर, बढ़ता बाज़ार-भाव, निम्न प्रतिशीर्ष आमदनी, उपभोक्ता वाद का प्रभाव आदि के कारण केरल की अर्थ-व्यवस्था जटिल होती जा रही है। लम्बी आयु दर के मामले में केरल की तुलना दक्षिण कोरिया, मलेशिया, चीन आदि से की जा सकती है। किन्तु वे तीनों केरल से भिन्न देश हैं और आर्थिक विकास के पथ पर अग्रसर हैं। यद्यपि मानव संसाधन विकास के सूचकों के अनुसार केरल भारतीय राज्यों में अग्रणी है। भूतकाल में केरल की प्रति व्यक्ति आय दर राष्ट्रीय आय दर से नीचे थी। जबकि केरल की आर्थिक व्यवस्था विकास का गुण प्रकट करती है। अस्सी के दशक के अंत में केरल का आर्थिक विकास औसत राष्ट्रीय आर्थिक विकास की दर से आगे निकल गया है। यह विकास अभी भी जारी है। किन्तु मात्र इसी से राज्य की स्थिति मज़बूत नहीं बनती।
वैश्वीकरण के प्रतिकूल प्रभाव ने कृषि तथा अन्य परम्परागत क्षेत्रों का खात्मा कर दिया है। इन क्षेत्रों में विगत छह - सात वर्षों से विकास नहीं हो रहा है। लेकिन अब इस स्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ है जो शुभसूचक है। केरल को ऐसा आर्थिक विकास प्राप्त करना है जो न्यायनिष्ठ स्थाई तथा अविलम्ब हो। साथ ही विकास के क्षेत्र में जो नीति अपनाई गयी है उसमें सरकारी हस्तक्षेप कम करने या सामाजिक कल्याण के व्यय कम करने का कोई प्रयास नहीं दिखाई देता।
स्वातंत्र्य पूर्व तिरुवितांकूर, कोच्चि, मलबार क्षेत्रों का विकास आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था की पृष्ठ भूमि है। भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताएँ केरल की आर्थिक व्यवस्था को प्राकृतिक संपदा के वैविध्य के साथ श्रम संबन्धी वैविध्य भी प्रदान करती हैं। केरल तीन प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में बँटा है। तटीय क्षेत्र सर्वाधिक सघन आबादी वाला क्षेत्र है। (2001 जनगणना के अनुसार प्रति वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में 819 का हिसाब भारतीय राज्यों में सबसे ऊँचा है।) यहाँ की उर्वर मिट्टी, नदी तट क्षेत्र, झीलें आदि मछली उत्पादन, चावल, नारियल तथा साग - सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त है। पर्वतीय एवं समुद्र तटीय क्षेत्रों के बीच के प्रदेशों में नारियल, चावल, टप्योका, सुपारी के पेड, काजू के पेड, रबड़, कालीमिर्च, अदरक आदि की खेती होती है। पूर्वी पहाडी क्षेत्र में कॉफी, चाय, रबड़ की खेती औपनिवेशिक काल से चलती चली आ रही है। 20 वीं सदी के मध्य में पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र में जनसंचार एवं स्थापन हुआ इससे केरल की आर्थिक व्यवस्था विकसित हुई।केरल में कृषि खाद्यान्न और निर्यात की जानेवाली फसलों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। शासन व्यवस्था तथा व्यापार के कारण निर्यात की जानेवाली फसलों बढोतरी हुई है। कयर उद्योग, लकडी उद्योग, खाद्य तेल उत्पादन आदि भी कृषि पर आधारित हैं। इसी के साथ ही धातुएँ, रसायन वस्तुएँ, इंजीनियरिंग आदि को आधार बनाने वाले बडे-बडे उद्योग भी विकास करने लगे हैं। इन क्षेत्रों में सार्वजनिक तथा निजी प्रतिष्ठान कार्य कर रहे हैं। कयर उत्पादन, कारीगरी, हैण्डलूम आदि केरल के परम्परागत व्यवसाय है।फिर भी यह कहना उचित नहीं कि केरल की आर्थिक व्यवस्था मात्र कृषि अधारित है। केरल के आर्थिक विकास का उल्लेखनीय पहलू न तो प्राथमिक क्षेत्र माने जानेवाला कृषि उद्योग है और न ही विभिन्न उत्पादन-निर्माण से युक्त उद्योग क्षेत्र है। आर्थिक विकास का मुख्य पहलू तीसरा क्षेत्र है जिसे सेवा - क्षेत्र कहा जाता है। केरलीय आमदनी तथा रोज़गार का अधिकांश भाग यहीं से प्राप्त होता है। केरल प्रायः सभी क्षेत्रों में भारत के अन्य राज्यों के आगे बढ रहा है, साधारणतः कोई भी राज्य प्रथम, द्वितीय और तृतीय क्षेत्रों को पार करके ही आर्थिक विकास के उच्च सोपान पर आरूढ हो सकता है। इस आर्थिक सिद्धांत के विरुद्ध प्रथम क्षेत्र एवं द्वितीय क्षेत्र को छोड तृतीय क्षेत्र में पहुँचकर केरल मृत्यु दर, साक्षरता औरत आयु आदि में विकसित देशों के समक्ष स्थान ग्रहण कर सकता है। कम प्रतिशीर्ष आय तथा ऊँची ऊँची बेरोज़गारी को पूँजी बनाकर केरल कैसे यह स्थिति प्राप्त कर सका यह अनुत्तरित प्रश्न सा रहता है। भारत का कोई भी दूसरा राज्य इस प्रकार दुनिया का ध्यान आकृष्ट नहीं कर सका। आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी जो विकास केरल में हुआ है उसकी चर्चा विकसित देशों में होती रहती है। 1980 के अंत में केरल की आर्थिक व्यवस्था ने जो उन्नति की उसकी Kerala Model नाम से विदेशों में भी चर्चा हुई। इस उदाहरण को लेकर आज बहुत से प्रश्न उठाये जाते हैं। उसके स्थायित्व पर कई अर्थशास्त्री संदेह प्रकट करते हैं।19 वीं शताब्दी से सरकार ने एक समाज कल्याण नीति अपनाई है और उसके कार्यान्वयन के अन्तर्गत आधारभूत सुविधाओं के लिए सरकार जो खर्च करती आ रही है वही केरल के सामाजिक विकास का मुख्य स्रोत है। इसके अतिरिक्त भारत के अन्यान्य क्षेत्रों तथा विदेशों, विशेषकर खाडी क्षेत्रों के अप्रवासी केरलीय (Non-resident Keralites) से प्राप्त धन राशी भी इस विकास का कारण है।