किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज, रँगी हो तुम किसके अनुराग, स्वर्ण सरजित किंजल्क समान, उड़ाती हो परमाणु पराग।
Answers
Answered by
0
किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज, रँगी हो तुम किसके अनुराग,
स्वर्ण सरजित किंजल्क समान, उड़ाती हो परमाणु पराग।
संदर्भ : ये पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘किरण’ से ली गयी हैं।
व्याख्या : कवि कहता है कि हे किरण तुम आज जो अपनी चमक बिखेर रही हो उसमे किसी का प्रेम छुपा हुआ है। तुम्हारे सुनहरी चमक में अनोखी आभा है। ऐसा लगता है कि तुम प्रेममय होकर अपनी चमक बिखेर रही हो। तुम सुनहरे कण चारों नन्हे-नन्हे परागों के समान उड़ रहे हैं।
Similar questions