कौरव और पांडवों की सेना के आगे कौन रहता था ?
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Explanation:
दोनों सेनाओं की स्थिति तथा कौरव सेना का अभियान
धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! सूर्योदय के समय किस पक्ष के योद्धा युद्ध की इच्छा से अधिक हर्ष का अनुभव करते हुए जान पड़ते थे? भीष्म के नेतृत्व में निकट आये हुए मेरे सैनिक अथवा भीमसेन की अध्यक्षता में आने वाले पाण्डव सैनिक! उस समय कौन अधिक प्रसन्न थे। चन्द्रमा, सूर्य और वायु किनके प्रतिकूल थे? किनकी सेना की ओर देखकर हिंसक जंतु भयंकर शब्द करते थे? किस पक्ष के नवयुवकों के मुख की कांति प्रसन्न थी? ये सब बातें तुम मुझे ठीक-ठीक बताओ। संजय बोले- नरेन्द्र! दोनों ओर की सेनाएं समान रूप से आगे बढ़ रही थी। दोनों ओर के व्यूह में खड़े हुए सैनिक हर्ष से उल्लसित थे। दोनों ही सेनाएं वनश्रेणियों के समान आश्चर्यरूप प्रतीत होती थीं और दोनों ही हाथी, रथ एवं घोड़ों से भरी हुई थीं। भारत! दोनों ओर की सेनाएं विशाल, भयंकर और दु:सह थीं, मानो विधाता ने दोनों सेनाओं को स्वर्ग की प्राप्ति के लिये ही रचा था। दोनों में ही सत्पुरुष भरे हुए थे। आपके पुत्र कौरवों का मुख पश्चिम दिशा की ओर था और कुंती के पुत्र उनसे युद्ध करने के लिये पूर्वाभिमुख खड़े थे। कौरव सेना दैत्यराज की सेना के समान जान पड़ती थी और पाण्डव-वाहिनी देवराज इन्द्र की सेना के तुल्य प्रतीत होती थी। पांडव सेना के पीछे की ओर से हवा चल रही थी और आपके पुत्रों की ओर देखकर हिसंक जंतु बोल रहे थे।