Economy, asked by simranpreetsingh45, 4 months ago

किस आधार पर अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों को सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र में वगीकृित

किया है ?​

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Answered by shrimanthbabu
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संदर्भ

अर्थव्यवस्था उत्पादन, वितरण एवं खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है। यह किसी देश या क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र का गतिशील प्रतिबिंब है। इस शब्द का सबसे प्राचीन उल्लेख कौटिल्य द्वारा लिखित ग्रंथ अर्थशास्त्र में मिलता है। अर्थव्यवस्था दो शब्दों से मिलकर बना है यहाँ अर्थ का तात्पर्य है- मुद्रा अर्थात् धन और व्यवस्था का तात्पर्य है- एक स्थापित कार्यप्रणाली। अर्थव्यवस्था में कार्यप्रणाली के कई स्वरुप हैं और इन्हीं स्वरूपों के आधार पर अर्थव्यवस्था का आयोजन एवं नियोजन प्रतिस्थापित होता है। मुख्यतः अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती है- समाजवादी, पूंजीवादी और मिश्रित। समाजवादी अर्थव्यवस्था में राज्य का अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप होता है, इसके अतिरिक्त मिश्रित अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप सीमित तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में राज्य का अर्थव्यवस्था में अत्यल्प हस्तक्षेप होता है। अर्थव्यवस्था के स्वरुप के आधार पर ही नियोजन का स्वरुप निर्धारित होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः मिश्रित प्रकृति की है लेकिन हिंदू वृद्धि दर की सीमित सफलता और भूमंडलीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्ष 1991 के बाद से निजीकरण किया जा रहा है। वर्तमान में सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की प्रवृत्ति के कारण इनका निजीकरण किया जाना एक विमर्श का विषय बना हुआ है।

सार्वजनिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

वर्तमान में कुछ बड़े सार्वजनिक उपक्रमों जैसे- भारत संचार निगम लिमिटेड, महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड और एयर इंडिया में घाटे की प्रवृत्ति देखी जा रही है, इन उपक्रमों का घाटा इनके राजस्व प्राप्ति से अधिक है। अर्थशास्त्रियों के पास ऐसे उपक्रमों के लिये एक शब्द है - मूल्य आहरण वाले उपक्रम (Value Subtracting Enterprises)। इनका पुनर्गठन और यहाँ तक कि धन और अन्य संसाधनों के प्रयोग के बावजूद सकारात्मक परिणाम नहीं उत्पन्न नहीं हो रहे हैं। सरकार को दिल्ली डिस्कॉम निजीकरण के मामले की भाँँति खरीदार को भुगतान करना पड़ सकता है। विश्व बैंक के सलाहकारों ने दिल्ली डिस्कॉम के निजीकरण पर कहा था: "निजीकरण का सहारा घाटे से निपटने के बजाय इनका भौतिक प्रदर्शन सुधारने के लिये किया जाना चाहिये।"

निजीकरण के उद्देश्य:

सामान्यतः यह माना जाता है कि "व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है"। इसलिये व्यापार/अर्थव्यवस्था में सरकार का अत्यंत सीमित हस्तक्षेप होना चाहिये। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन बाज़ार कारकों के माध्यम से होता है। भूमंडलीकरण के पश्चात् इस प्रकार की अवधारण का और तेज़ी से विकास हो रहा है।

इसके अतिरिक्त निजीकरण के कुछ अन्य प्रमुख उद्देश्य हैं-

वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं को “गैर सामरिक उद्यमों” के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर अपना अधिक ध्यान केंद्रित करे।

गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगी सार्वजनिक संसाधनों की बड़ी धनराशि को समाज की प्राथमिकता में सर्वोपरि क्षेत्रों में लगाना चाहिये। जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा तथा सामाजिक और आवश्यक आधारभूत संरचना।

अव्यवहार्य और गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को संपोषित किये जाने वाले दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों के उत्तरोत्तर बाह्य प्रवाह (Further out flow) को रोककर सार्वजनिक ऋण के बोझ को कम किया जाना चाहिये।

वाणिज्यिक जोखिम जिस सार्वजनिक क्षेत्र में करदाताओं का धन लगा हुआ है, को ऐसे निजी क्षेत्र में हस्तांतरित करना जिसके संबंध में निजी क्षेत्र आगे आने के लिये उत्सुक और योग्य हैं। वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगा धन जनसाधारण का होता है। इसलिये कॉर्पोरेट क्षेत्र में लगाए जा रहे अत्यधिक वित्त की मात्रा पर विचार किया जाना अतिआवश्यक है।

वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बढ़ती गैर-निष्पादन परिसंपत्ति (NPA) की मात्रा, दबावग्रस्त परिसंपत्तियों, बढ़ते भ्रष्टाचार तथा बेहतर प्रबंधन एवं संचालन क्षमता की समस्या आदि की वज़ह से सरकार से बैंकों के स्वामित्व में अपनी हिस्सेदारी बेचने की बात की जा रही है।

निजीकरण से तात्पर्य:

वर्तमान लोकतंत्र में निजीकरण अत्यंत बहुचर्चित विषय है। निजीकरण का अर्थ अनेक प्रकार से व्यक्त किया जाता है। संकुचित दृष्टि से निजीकरण का अभिप्राय सार्वजनिक स्वामित्व के अंतर्गत कार्यरत उद्योगों में निजी स्वामित्व के प्रवेश से लगाया जाता है। विस्तृत दृष्टि से निजी स्वामित्व के अतिरिक्त (अर्थात् स्वामित्व के परिवर्तन किये बिना भी) सार्वजनिक उद्योगों में निजी प्रबंध एवं नियंत्रण के प्रवेश से लगाया जाता है, निजीकरण की उपुर्यक्त दोनों विचारधाराओं का अध्ययन करने के पश्चात् यही अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है कि निजीकरण को विस्तृत रूप से ही देखा जाना चाहिये।

यह भी संभव है कि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र को संपत्ति के अधिकारों का हस्तांतरण बिना विक्रय के ही हो जाए। तकनीकी दृष्टि से इसे अधिनियम (Deregulation) कहा जा सकता है। जिसका आशय यह है कि जो क्षेत्र अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में आरक्षित थे उनमें अब निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी। अन्य स्पष्ट शब्दों में निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एक नवीन औद्योगिक संस्कृति का विकास होता है यानि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र की तरफ कदम बढ़ाया जाना।

आर्थिक सुधारों के संदर्भ में निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक क्षेत्र के लिये सुरक्षित उद्योगों में से अधिक-से-अधिक उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोलना। इसके अंतर्गत वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पूरी तरह या उनके एक हिस्से को निजी क्षेत्र को बेच दिया जाता है।

निजीकरण के लाभ:

"व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है" इस अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में निजीकरण से कार्य निष्पादन में बेहतरीन संभावना होती है।

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