किस बालक की प्रेरणा से उनके पिता ने अपना शीश कटा कर बलिदान दिया था
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गुरु गोविंद सिंह जी ने भाई जैता के साहस से प्रसन्न होकर उन्हें रंगरेटे-गुरु के बेटे का खिताब दिया। गुरु जी के शीश का दाह-संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया। गुरु जी के शरीर को भाई लखी शाह और उनके पुत्र अपने गांव रकाबगंज ले गए और घर में आग लगाकर गुरु जी का दाह-संस्कार किया।
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गुरु गोविंद सिंह जी ने भाई जैता के साहस से प्रसन्न होकर उन्हें रंगरेटे-गुरु के बेटे का खिताब दिया। गुरु जी के शीश का दाह-संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया। गुरु जी के शरीर को भाई लखी शाह और उनके पुत्र अपने गांव रकाबगंज ले गए और घर में आग लगाकर गुरु जी का दाह-संस्कार किया
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