किसी भी क्रिया को संपन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं; जैसे-“ वह हाथों से शिकार को जकड़ लेती थी।”
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क) यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूडि़यों से।
संसार में - अधिकरण कारक
बदलू को - कर्मकारक
किसी बात से- अपादान कारक
काँच की चूडि़यों- संबंध कारक
ख) पत्र-संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र-लेखन का विषय भी शामिल किया गया।
विकसित करने के लिए- संप्रदान कारक
पाठ्यक्रमों में- अधिकरण कारक
पत्र-लेखन का- संबंध कारक
(ग) कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने का मन बनाया।
नौजवानों ने- कर्ता कारक
ड्राइवर को- कर्म कारक
घ) मैं आगे बढ़ा ही था कि बेरे की झाड़ी पर से मोती-सी बूँद मेरे हाथ पर आ गिरी।
मैं - कर्ता कारक
बेर की - संबंध कारक
झाड़ी पर से - अपादान कारक
मेरे हाथ पर - अधिकरण कारक
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