किसी भी विषय पर एक स्वरचित लघु कथा का लेखन कीजिए
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laghu katha
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बच्चों का मन हर पल नई-नई चीजों को जानने और सीखने के लिए उत्साहित रहता है। यही नई चीजें अगर उन्हें मजेदार तरीके से सिखाई जाएं, तो वो और भी आसानी से इन्हें सीख सकते हैं और इस काम में कहानियां आपकी मदद कर सकती हैं।ये कहानियां ही होती हैं, जो बच्चों की कल्पनाओं की दुनिया को खूबसूरत बनाने में मदद करती है। कहानियां न सिर्फ बच्चों के मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि खेल-खेल में उनके जीवन को बेहतर बनाने का एक आसान तरीका भी हैं। एक छोटी-सी कहानी बच्चों के मन में कल्पनाओं के नए द्वार खोलती है और अंत में बताए गई सीख उन्हें बचपन से ही अच्छे-बुरे चीजों में फर्क करना सिखाती है। इतना ही नहीं बच्चों का मन बहुत चंचल होता है, हो सकता है लंबी कहानियां उन्हें अपनी ओर खींचने में असफल हो। यही वजह है कि हम कहानियां के इस सेक्शन में बच्चों के लिए लघु कहानियां लेकर आए हैं। शरारत करते बच्चों को शांत करना हो या रात को उन्हें गहरी नींद में सुलाना हो, लघुकथा अपना काम बखूबी करती है। ये लघु कथाएं न सिर्फ मजेदार हैं, बल्कि शिक्षाप्रद भी हैं। ये लघु कहानियां न सिर्फ छोटे बच्चों को खुश करेंगी, बल्कि बड़ों को भी उनके बचपन की यादें ताजा करने का मौका मिलेगा।
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विद्यार्थी जीवन
महात्मा गांधी कहां करते थे शिक्षा ही जीवन है इसके समक्ष सभी धन पीके हैं विद्या के बिना मनुष्य कंगाल बन जाता है क्योंकि विद्या का ही प्रकाश जीवन को आलोकित करता है विद्याध्ययन का समय बाल्यकाल से आरंभ होकर युवावस्था तक रहता है यूं तो मनुष्य जीवन भर कुछ ना कुछ सीखता रहता है किंतु नियमित अध्ययन के लिए यही अवस्था उपयुक्त है
मनुष्य की उन्नति के लिए विद्यार्थी जीवन एक महत्वपूर्ण अवस्था है इस काल में वे जो सीख पाते हैं वह जीवन पर्यंत उनकी सहायता करता है इसके अभाव में मनुष्य का विकास नहीं हो सकता जिस बालक को यह जीवन बिताने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रह जाता है
यह वह अवस्था है जिसमें अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है यह वह जीवन है जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क और आत्मा के विकास का सूत्रपात होता है यह वह अमूल्य समय है जो मानव जीवन में सभ्यता और संस्कृति का बीज रोपण करता है इस जीवन की क्षमता मानव जीवन का कोई अन्य भाग नहीं कर सकता
ब्रह्मचर्य विकास का मूल है यही विद्यार्थी को उसके लक्ष्य पर केंद्रित करता है शरीर आत्मा और मन में संयम रखकर विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में सहायता करता है शालीनता, निष्ठा , नियमित ,कर्तव्य ,भावना तथा परिश्रम की ओर रुचि पैदा करता है और दुर्व्यसन , पतन तथा आत्मानंद से रक्षा करता है सदाचार ही जीवन है
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा निवास करती है अतः आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने अंगों को समुचित विकास करें खेल कूद और व्यायाम आदि के द्वारा शरीर भी बलिष्ठ होता है और मनोरंजन के द्वारा मानसिक श्रम का बोझ भी उतर जाता है खेल के नियम में स्वभाव और मानसिक प्रवृतियां भी सध होती है
महान बनने के लिए महत्वाकांक्षा भी आवश्यक है विद्यार्थी अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है जबकि उसकी विधियां में महत्वाकांक्षा की भावना हो ऊपर दृष्टि रखने पर मनुष्य ऊपर ही उठता जाता है
आज भारत के विद्यार्थी का स्तर पहले की अपेक्षा गिर चुका है उसके पास ना सदाचार है ना आत्म बल इसका कारण विदेशों द्वारा प्रचलित अनुपयोगी शिक्षा प्रणाली है अभी तक भी उसी का अंधाधुंध अनुकरण चल रहा है जब तक इस सड़ी गली विदेशी शिक्षा पद्धति को उखाड़ नहीं फेंका जाता तब तक ना तो विद्यार्थी का जीवन ही आदर्श बन सकता है और ना ही शिक्षा सर्वांग पूर्ण हो सकती है इसलिए देश के भाग्य विधाताओं को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है
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