किसी एक लोकोक्ति का भाव विस्तार करो आप भले तो जग भला, अधजल गगरी, छलकत जाए।
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दी गई लोकोक्ति में से एक लोकोक्ति का भाव विस्तार इस प्रकार है...
अधजल गगरी, छलकत जाए...
❝अधजल गगरी छलकत जाए का सामान्य अर्थ यह है कि जिसमें ज्ञान की कमी होती है वह उतना ही अधिक ज्ञान का प्रदर्शन करने का दिखावा करता है।❞
भाव विस्तार ➲ ज्ञान की कमी वाले लोग अपने अधकचरे ज्ञान को छुपाने के लिए अक्सर अधिक ज्ञानी होने का दिखावा करते हैं, जबकि सच्ची बात यह है कि जो विद्वान वास्तव में विद्वान है, वह कभी अपने ज्ञान का दिखावा नहीं करता।
ज्ञान एक गुण है, जो कोई भी संपूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान एक ऐसा सागर है कि उसे जितना भी समेटने का प्रयत्न करो, कभी भी उसे पूरी तरह प्राप्त नहीं कर सकते। कोई भी व्यक्ति अपना पूरा जीवन कितना भी ज्ञान प्राप्त कर ले वो कभी भी संपूर्ण ज्ञानी नही बन सकता। जो सही अर्थों में विद्वान होते हैं, वो इस बात को जानते हैं, इसलिए वे पूर्ण ज्ञानी होने का दिखावा नहीं करते। ठीक इसके विपरीत अधकचरे ज्ञान और आधे-अधूरे ज्ञान वाले व्यक्ति होते हैं, वह अपने अधकचरे आधे-अधूरे ज्ञान को भी अपना पूर्ण ज्ञानी होने के लिए स्वयं को ऐसा प्रदर्शित करते हैं कि उन्होंने संपूर्ण ज्ञान हासिल कर दिया है, इसीलिए कहते हैं अधजल गगरी छलकत जाए।
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