Hindi, asked by pruthaaa, 5 months ago

किसी एक विषय पर 80 से 100 शब्दों में निबंध
1) मैं नदी बोल रही हूँ​

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Answered by sanjanakumari54
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नदी की आत्मकथा

मै नदी बोल रही हूँ। मेरे कितने ही नाम है जैसे नदी , नहर , सरिता, प्रवाहिनी , तटिनी, क्षिप्रा आदि । ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए है। सर- सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है। सतत प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है। इसी प्रकार दो तटो के बीच में बहने के कारण तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूँ। साधारण रूप में मै नहर या नदी हूँ। मेरा नित्यप्रति का काम है की मै जहाँ भी जाती हूँ वहाँ की धरती पशु- पक्षी, मनुष्यों व खेत - खलिहानों आदि की प्यार की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हूँ तथा उन्हें हरा भरा करती रहती हूँ। इसी मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है।

आज मै जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हूँ वैसी में सदैव से नही हूँ। प्रारम्भ में तो मै बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप, अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी। कुछ समय पश्चात मै एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढती गई। जब मै तेजी से आगे बढ़ने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर उधर बिखरे पत्थरों ने , वनस्पतियों, पड़े - पौधों ने रोकना चाहा तो भी मै न रुकी कई कोशिश करते परन्तु मै अपनी पूरी शक्ति की संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती।

इस प्रकार पहाडो , जंगलो को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची। जहाँ - जहाँ से मै गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योकि मेरा विस्तार होता जा रहा था मैदानी इलाके में मेरे तटो के आस-पास छोटी - बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई। वही अनेको गाँव बसते गए। मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी। लोगो ने अपनी सुविधा की लिए मुझे पर छोटे बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है।

इस प्रकार पहाडो , जंगलो को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची। जहाँ - जहाँ से मै गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योकि मेरा विस्तार होता जा रहा था मैदानी इलाके में मेरे तटो के आस-पास छोटी - बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई। वही अनेको गाँव बसते गए। मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी। लोगो ने अपनी सुविधा की लिए मुझे पर छोटे बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है।इतनी सब बाधाओ को पार करते हुए चलते रहने से अब मै थक गई हूँ तथा अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमे समाने जा रही हूँ। मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएँ घटते हुए देखी है। सैनिको की टोलियाँ, सेनापतियो , राजा - महाराजाओ, राजनेताओं , डाकुओ , साधू-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है। पुरानी बस्तियाँ ढहती हुई तथा नई बस्तियाँ बनती हुई देखी यही है मेरी आत्मकथा। मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सहा है। मै आप सभी से यह कहना चाहती हूँ की आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओ को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो।

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