किसी एक विषय पर लगभग 150 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए मोबाइल क्रांति
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31 जुलाई, 1995. दिल्ली के संचार भवन में बैठे तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम ने कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में बैठे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु को फोन लगाया. यह कोई आम कॉल नहीं थी. यह भारत में मोबाइल से मोबाइल पर हुआ पहला संवाद था. भारत में संचार क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी. बाकी फिर इतिहास है. यह 24 साल पहले की बात है. आइए आज पहली कॉल से 120 करोड़ मोबाइल ग्राहकों तक के ऐतिहासिक सफ़र पर नज़र डालते हैं.
क्या हालात थे?
1994 में भारत में प्रति 100 व्यक्तियों पर 0.8 फ़ोन कनेक्शन थे. इसे टेलीडेंसिटी (घनत्व) कहते हैं. तब कनेक्शन लेने के लिए लंबी लाइनें होती थीं. रिश्वत का खूब बोलबाला था. सरकार ने मांग को देखते हुए और टेलिकॉम में विदेशी निवेश को आमंत्रण देते हुए पहली दूरसंचार नीति पेश की. इसमें 25 फीसदी विदेशी निवेश की छूट दी गई. चूंकि भारत में उस वक़्त मोबाइल टेलीफ़ोनी तकनीक नहीं थी, इसलिए एक विदेशी कंपनी के साथ बाज़ार में उतरना अहम शर्त थी. मिसाल के तौर पर एयरटेल ने सिंगापुर की सिंगटेल और श्याम टेलिकॉम ने कनाडा की टीआईडब्लू के साथ क़रार किए.
मोबाइल से पहले पेजर
जुलाई, 1995 में टेलिकॉम की शुरुआत हुई थी, पर उससे दो महीने पहले, यानी 16 मार्च को पेजर सेवा भी शुरू हुई थी. जिनको पेजर की जानकारी कम है वे यह जानें कि यह एक छोटी सी डिवाइस थी जिससे एकतरफ़ा संवाद होता था. भेजने वाले का संदेश दूसरे व्यक्ति को पेजर में लिखित रूप में प्राप्त होता था. इसे एक तरह से तुरंत मिलने वाला टेलीग्राम मान लीजिये. जहां पेजर एकतरफ़ा संवाद था जो लिखित होता था तो वहीं मोबाइल कम्युनिकेशन दोतरफ़ा और आवाज़ के रूप में था. मोबाइल के कारण पेजर का अस्तित्व कुछ ही साल रहा. मोबाइल क्रांति के सफ़र को कई चरणों में बांटा जा सकता है.
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