किसी एक विषय पर निबंध लिखिए
1 प्रतीक का महत्व
2 किसान की आत्मकथा
3 मेरा प्रिय त्योहार
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एक किसान की आत्मकथा
कहते हैं की किसान का दर्ज़ा किसी भी देश में सबसे बड़ा माना जाता है| मैं एक किसान हूँ तथा अपने द्वारा रोपित एक-एक बीज की कीमत जानता हूँ, मेरे पिता जी तथा मेरे दादा जी सभी किसान थे।
मैं खुद को उनसे ज्यादा खुशनसीब मानता हूँ क्योंकि मेरा जन्म आज़ादी के पश्चात हुआ जिससे मुझे उतनी तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ा जो मेरे पिता व दादा को करना पड़ा था।
मेरा शुरुवाती जीवन
भारत देश को एक कृषि प्रधान देश की उपमा दी जाती है क्योंकि भारत की राष्ट्रीय आय में लगभग 68% कृषि का योगदान होता है। मेरे पिता-दादा जी के प्रारंभिक जीवन के बारे में बचपन में दादी से सुना था की उनकी स्थिति बेहद नाज़ुक और दयनीय थी लेकिन उन्होंने खून-पसीने से अपने परिवार को पाला जिसमें मेरा बचपन भी शामिल था।
मेरा नाम श्याम सुन्दर माली है मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के बेहद छोटे से गाँव हरिपुर में हुआ था। मेरे पिताजी तथा माताजी जन्म से निरक्षर थे तो उन्होंने मुझे शुरुवाती शिक्षा के लिए जिले एक एक सरकारी प्राथमिक शाला में भेजा जो कक्षा चार तक था प्राथमिक शिक्षा के वजह से सामान्य जोड़ तथा पैसे का लेखाजोखा वही से सीखा लेकिन धन के अभाव में आगे की पढाई न कर सका और पिताजी के काम में हाथ बटाने लगा।
मैं और मेरे पिताजी पहली पहर से लेकर सूर्यास्त की आख़िरी रौशनी तक खेतों में काम करते थे और उसके बाद बैलों को चारा-पानी देना और भोजन कर रात्री विश्राम करना यही मेरे युवावस्था तक का प्रमुख कार्य रहा।
मेरे जीवन की कठिनाइयाँ
एक किसान होने के यहाँ पैदा होने का मतलब गरीबी और तकलीफों से सामना, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ अम्मा कहती थी की डॉक्टर ने मेरी बचने की उम्मीद बहुत कम थी क्योंकि मैं कुपोषण के साथ पैदा हुआ था लेकिन सबकी दुआओं से मैं बाख गया।
मेरे पिताजी किस्मत के सामने हार मान चुके थे जैसे की और किसानों की हालत थी लेकिन वे रोज एक नई ताकत के साथ खेतों में जाते थे।
एक किसान अपनी पूंजी तथा श्रम, शरीर सभी को अपने खेत में बो देता है और उस उपज को बेहद मामूली रकम पर साहूकारों को बेच देता है। इसे एक किसान का दुर्भाग्य कहें तो कोई अनिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि जिस प्रकार एक माता अपनी संतान को नौ महीने गर्भ में रखकर शिशु को पोषण देती है उसी प्रकार एक किसान भी अपनी जमीन को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है।
मेरे युवावस्था के पहले कदम पर ही मेरा विवाह हो गया और दो साल में एक संतान भी हुई जिसका नाम चंद्रराज रखा है लेकिन मेरी ख़ुशी ज्यादा देर ठहर न सकी क्योंकि कुछ महीने बाद ही पिता जी का रोगवश देहांत हो गया जिसके कारण अपने युवावस्था में ही मेरे ऊपर परिवार को पालने का बोझ आ गया।
अब मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी मेरा एक बेटा और मेरी बूढी और बीमार माँ के निर्वहन का कर्तव्य भी जुड़ गया था और इस काम में मेरी धर्मपत्नी भी जुड़ गयी मेरे साथ खेत में काम करना तथा मेरे लिए रुखी सुखी रोटी तथा सहयोग लेकर साथ रहना उसकी दिनचर्या बन गयी।
मेरे जीवन के बदलाव
मैंने दरिद्रता के कई रूप देखे, मैंने अपने साथियों को रोग, भूख और क़र्ज़ से मरते देखा। भारत को आजाद हुए दशकों हो चुके लेकिन आज भी किसान की स्थिति गुलामों की तरह है जिसके जान-माल का कोई मोल नहीं है आज हर रोज बड़ी मात्रा में किसान आत्महत्या कर रहें हैं।
मेरे मन में आत्महत्या के कई विचार आये पर अपने बच्चों पर मैं वो परेशानी नहीं आने देना चाहता था जो मैंने बचपन में सही थी।
निष्कर्ष
आपने इस लेख में एक किसान की आत्मकथा Autobiography of a Farmer in Hindi पढ़ा जिसमें एक किसान दुख-दर्द और जीवन को आप करीब से जान पाएंगे। अगर यह लेख व निबंध आपको सरल लगा हो और पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें।
Explanation:
किसान की आत्मकथा
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