कूसंगती के बारे मैं समझते हुए छोटे भाई को पत्र लिकिये
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115, न्यू जवाहर नगर,
जालन्धर।
8 दिसम्बर, 19…
प्रिय अनुज,
शुभाशीष!
आशा है तुम स्वस्थ एवं प्रसन्नचित होंगे। आज मुझे एक साथ दो पत्र प्राप्त हुए–एक घर से माता जी का तथा दूसरा तुम्हारे विद्यालय के प्रधानाचार्य द्वारा भेजा गया अंक पत्र तथा रिपोर्ट। दोनों पत्रों के विषय तुम ही हो। माता जी ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि तुम अधिकांश समय ऐसे मित्रों के साथ व्यतीत करते हो जिन्हें तुम ही पहले भला-बुरा कहते थे और उसका परिणाम भी आज तुम्हारे सामने हैं। त्रैमासिक परीक्षा में तुम कक्षा में प्रथम थे परन्तु इस समय दो विषयों में अनुत्तीर्ण हो। तुम्हारे प्रधानाचार्य ने भी तुम्हारे व्यवहार को संतोषजनक नहीं पाया है।
प्रिय मैया ! तुम्हारा यह जीवन उस कलिका के समान है जिसे कल खिल कर सुगन्धि बिखेरनी है। तुम ही मुझे कहा करते थे कि भैया मैं डाक्टर ही बनूंगा और तुम्हे स्मरण होना चाहिए कि तुमने प्रतिज्ञा की थी मैं सदैव ही अपनी कक्षा में प्रथम रहूंगा। मैं जानता हूं कि केवल बुरी संगति के कारण ही तुम्हें इस समय यह परिणाम देखना पड़ा है। मुझे विश्वास है कि मेरा प्रिय भाई मेरी बात को समझने की कोशिश करेगा तथा उचित और अनुचित का विचार कर उचित मार्ग को अपनाएगा। देखो, पारस पत्थर का स्पर्श पाकर लोहा सोना हो जाता है, फूल की सुगन्धि से मिट्टी का ढेला भी सुगन्धित हो उठता है, परन्तु बेर का साथ पाकर केले का शरीर कांटों से बिंध जाता है। बुरे बच्चों का साथ करने के कारण अब तुम अपना अधिकांश समय व्यर्थ घूमने में बरबाद करते हो। बेकार घूमने से स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है और लोगों की नज़रों में भी गिरते हैं तथा पढ़ाई का भी नुकसान होता है।
मैं जानता हूं कि यह पत्र पाते ही मेरा प्रिय भाई अपने को कुसंगति से बचा लेगा और अपनी प्रतिज्ञा को पुनः पूरी कर दिखाएगा। यदि तुम्हे किसी भी चीज की आवश्यकता हो तो लिखना। घर में माता जी को प्रणाम्। अन्य को यथायोग्य।।
तुम्हारा अग्रज
क. खु. ग.