(क) "संगतकार' कविता में संगतकार त्याग की मूर्ति है, कैसे?
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sangatkar Kavita mein sangatkar tyag ki murti hai
- vah apni awaaz dheemi kar leta hai jab ki usi ki awaaz jyada meethi hai
- vah Apne sawar ko gayak se dhima rakhta hai
- apni awaaz mein hichkichahat Lata hai
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‘संगतकार’ त्याग की मूर्ति है, क्योंकि उसका संपूर्ण जीवन मुख्य गायक के लिए अर्पित हो जाता है। उसकी सामर्थ्य तथा योग्यता मुख्य गायक की सफलता को अर्पित हो जाती है। संगतकार कभी भी मुख्य गायक को पछाड़कर उससे आगे निकलने का प्रयास नहीं करता । यह संभव है कि संगतकार के मन में उससे आगे निकलने की भावना हो, तब वह या तो उसे कुचल देता है अथवा मुख्य गायक से अलग होकर अपनी अलग टीम बना सकता है। दोनों ही स्थितियों में त्याग अनिवार्य बन जाता है ।
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