किसी जंगल में एक सिंह रहता था । एक दिन वह सारे जंगल में भटकता फिरता रहा किन्तु उसे कोई शिकार न मिला । वह भूख से व्याकुल था । शाम के वक्त वह एक गुफा में गया और सोचने लगा - शायद रात को कोई पशु आ जाए अतः चुपचाप बैठता हूँ । थोड़ी देर में वहाँ गुफा का स्वामी गीदड़ आ गया । उसने देखा कि गुफा में जाने वाले सिंह के पाँव तो हैं , किन्तु वापसी के नहीं । वह सोचने लगा - अब तो मारा जाऊँगा , क्योंकि इसमें सिंह अवश्य है , लेकिन ज्ञात कैसे हो ? कुछ देर सोचकर वह बोला- “ हे गुफा ! हे गुफा ! " ऐसा कहकर वह कुछ वक्त के लिए शान्त हो गया । फिर वह बोला- “ हे गुफा ! क्या तुझे मेरी शर्त याद नहीं कि बाहर से आने पर तू मुझे बुलायेगी और मैं तुझे । यदि तूने ऐसा नहीं किया तो मैं अन्यत्र गुफा में चला जाऊँगा । " सिंह ने सोचा , निश्चय ही यह गुफा मेरे भय के कारण नहीं बोल पा रही है , अतः क्यों न मैं ही इस गीदड़ को बुलाऊँ जिससे यह गुफा में आए , तो मैं इसे खा लूँ । जैसे ही सिंह दहाड़ा , जंगल के सारे पशु भाग खड़े हुए । गीदड़ भो यह कहता हुआ भाग निकला । “ जो भी मुसीबत आने से पूर्व उपाय करता है , वही सुखी रहता है । जो भी ऐसा नहीं करता , वह पछताता है । इस वन में रहते - रहते मैं बूढ़ा हो गया , लेकिन मैंने कभी गुफा को बोलते न सुना , अतः मैं आपसे यही कहता हूँ कि आप लोग यहाँ से भाग निकलें , अन्यथा सभी मारे जाओगे । " मन्त्री की बात सुनकर , वे सभी उसके साथ जाने को तैयार हो गए । उसके बाद उल्लू ने राजनीति की एक कथा जंगल के जानवरों को सुनानी आरम्भ की ।
इस पूरे गद्य का हिंदी में सार
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मुसीबत के वक्त भी हमें शांत रहकर
अक्ल का उपयोग कर काम करना चाहिए।
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