किसी की इज्जत करना हमारा प्रथम कर्तव्य है। अगर इसी इज्जत का वह गलत प्रयोग करने लगे तो आपको कैसा लगेगा अपने शब्दों में लिखो (80-100)
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कर्तव्य क्या है? कोई कार्य करने से पहले यह जानना आवश्यक है। विभिन्न जातियों में, विभिन्न देशों में इस कर्तव्य के संबंध में भिन्न-भिन्न अवधारणाएं हैं। एक मुसलमान कहता है कि जो कुछ कुरान शरीफ में लिखा है, वही मेरा कर्तव्य है। एक हिन्दू कहता है जो मेरे वेदों में लिखा है, वही मेरा कर्तव्य है। एक ईसाई की दृष्टि में जो बाइबल में लिखा है वही उसका कर्तव्य है। स्पष्ट है कि जीवन में अवस्था, काल, जाति के भेद से कर्तव्य के संबंध में भी धारणाएं बहुविध होती हैं।
सामान्यतः यह देखा जाता है कि सत्पुरुष अपने विवेक के आदेशानुसार कर्म किया करते हैं। परंतु वह क्या है जिससे एक कर्म कर्तव्य बन जाता है।
यदि एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को बंदूक से मार डाले, तो उसे यह सोचकर दुख होगा कि उसने कर्तव्य भ्रष्ट होकर अनुचित कार्य कर डाला, परंतु यदि वही मनुष्य एक फौज के सिपाही की हैसियत से एक नहीं बल्कि बीस आदमियों को भी मार डाले तो उसे यह सोचकर प्रसन्नता होगी कि उसने अपना कर्तव्य निभाया।
दूसरों का सम्मान करें और सम्मान पाएं: आप दूसरों को जितना सम्मान देंगे उतना ही आपको लोगों से सम्मान मिलेगा। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि लोग आपका आदर करें तो पहले आप लोगों को इज्जत देना सीखें। मतलब, आप जैसा व्यवहार चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरे लोगों के साथ करें।
लोग जितनी इज्जत आपको देते हैं, उनको उतनी इज्जत जरूर दें। किसी का अपमान करके आप उसके दिल में अपने लिए जगह नहीं बना सकते। आप तभी लोगों का दिल जीत सकते हैं जब आप उन्हें प्यार देना जानते हो। तभी आप उसे प्यार देने के लिए जज कर सकते हैं।
यदि आप दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान नहीं करते हैं तो आप उनसे यह उम्मीद कभी न करें कि वे आपका सम्मान करेंगे। चाहे आप उनकी बात से सहमत न हो, पर फिर भी आपको उनकी बातों को गौर से, पूरे सम्मान के साथ सुनना चाहिए।
आपकी बात अलग-अलग हो सकती है लेकिन कम से कम आपको उनकी बातें सुननी तो चाहिए। उनकी बात को समझने की कोशिश करें। आप उनकी बातों से असहमत हो सकते हैं लेकिन आपको उनका मजाक या अपमान नहीं करना चाहिए।