Hindi, asked by Narinder1577, 10 months ago

किस के मन की बात मन में रह गई और क्यों? Answer in long way

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Answered by dikshanikam2021
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Answer:

मेरे मन की बात मेरे ही मन मे रही उसे मैंने सच बताया ही नही । आज फिर से में उसकी हु

Answered by dgmellekettil
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Answer: किस के मन की बात मन में ही रह गई यह पंक्ति 'पद सूरदास "से ली गई है, जिसके रचयिता सूरदास है।

पंक्तियां कुछ इस प्रकार है:

मन की मन ही माँझ रही।कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही। नाहीं परत कही।अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।

अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।

चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।

मन की मन ही माँझ रही

कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।

  • Explanation:किस के मन की बात मन में ही रह गई यह पंक्ति 'पद सूरदास "से ली गई है, जिसके रचयिता सूरदास है।
  • इन पंक्तियों के माध्यम से सूरदास कहना चाहते हैं कि गोपियां श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रही थी ,प्रेम के विरह में तड़पती हुई गोपियां श्री कृष्ण के संदेश के रूप में विरह की पीड़ा को कम करने के लिए उनसे मिलना चाहती थी ,पर उद्धव जी के हाथों श्री कृष्ण गोपियों को योग का संदेश भेज देते हैं।
  • गोपियों के मन की बात मन में ही रह जाती है, गोपियों ने उद्धव जी के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते से की है जो नदी के जल में रहते हुए भी जल की ऊपरी सतह पर ही रहता है अर्थात कृष्ण का सानिध्य पाकर भी वह श्रीकृष्णमय नहीं हो सके।
  • गोपियां अपनी कड़वी वाणी से अपनी खटास उद्धव जी पर ही निकाल देती है, क्योंकि प्रेम के स्थान पर उन्हें ज्ञान की बात शोभा नहीं दे रही, इसलिए व्यंग्यात्मक तरीके से उद्धव जी का विरोध कर रही है।
  • वह विरह से निकलना ही नहीं चाहती ,गोपियों के अनुसार योग की शिक्षा उन्हें ही लेनी चाहिए ,जिनका मन उसके बस में रहे ।पर गोपियों का मन तो उनकी बस में है ही नहीं,अंत: योग की शिक्षा उन्हें अच्छी नहीं लगती हैं।
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