Hindi, asked by pragyarawat333, 7 months ago

कि
सी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको
नहीं है पद-चिहन का आधार भी दरकार
विनमत करना
ले निराला मार्ग उस पर सींच जल काट उगाँती
और उनको अदिती हर कदम में आगे बढ़ाता।
शूली से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूँ मैं?
बाँध तिी' में हृदय की आग चुप जलता रहे जो
और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो,
जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता
यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता।
प्रलय की ज्वाला लिए हूँ, दीप बन कैसे जलूँ मैं?
जग' दिखाता है मुझे रे राह मंदिर और मठ की
एक प्रतिमा में जहाँ विश्वास की हर साँस अटकी,
चाहता हूँ भावना की भेंट मैं कर दूँ अभी तो
सोच लूँ पाषाण में भी प्राण जागेंगे कभी तो,
पर स्वयं भगवान हूँ, इस सत्य को कैसे छलूँ मैं?
*
-हरिशंकर परसाई

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Answered by mishrapardeep639
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