Hindi, asked by rohansaha868, 1 day ago

कैसे कहा जा सकता है कि लूसी ने संघर्ष के बाद ही प्राण दिए होंगे?​

Answers

Answered by divinesha2007
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लूसी को मंगवानेवालों के लक्कड़पन से कोई शिकायत कभी नहीं रही. गले में कपड़ा बांधते ही वह तीर की तरह दूकान की दिशा में चल देती. उसकी तत्परता के कारण मंगानेवालों में भूलने की प्रवृत्ति बढ़ती ही थी. एक दिन किसी अधिक ऊंचाई पर बसे पर्वतीय ग्राम से बर्फ में भटकता हुआ एक भूटिया कुता दूकान पर आ गया और लूसी से उसकी मैत्री हो गई. उन दोनों में आकृति की वही भिन्नता थी, जो एक तराशी हुई सुडौल मूर्ति और अनगढ़ शिलाखण्ड में होती है, परन्तु दुर्दिन के साथी होने के कारण वे सहचर हो गए. सामान्य कुत्ते तो लकड़बग्घे को देखते ही स्तब्ध और निर्जीव से हो जाते हैं; अत: उन्हें घसीट ले जाने में इसे कोई प्रयास ही नहीं करना पड़ता. असामान्य भूटिये या अल्सेशियन फुते उससे संघर्ष करते हैं अवश्य, परन्तु अन्त: पराजित ही होते हैं. 4-5 दिन के बच्चों को छोड़कर लूसी फिर दूकान तक आने-जाने लगी थी. एक संध्या के झुटपुटे में लूसी ऐसी गई कि फिर लौट ही नहीं सकी. बर्फ के दिनों में सांझ ही से सघन अन्धकार घिर आता है और हवा ऐसी तुषार बोझिल हो जाती है कि गंध भी वहन नहीं कर पाती. इसी से प्राय: शीतकाल में घ्राणशक्ति के कुछ कुंठित हो जाने के कारण कुत्ते लकड़बग्घे के आने की गंध पाने में असमर्थ रहते हैं और उसके अनायास आहार बन जाते हैं. सवेरे बर्फ पर कई बड़े-छोटे पंजों के तथा आगे- पीछे घसीटने-घिसटने के चिह्न देखकर निश्चय हो गया कि लूसी ने बहुत संघर्ष के उपरांत ही प्राण दिये होंगे. बर्फ पर रक्त के पनीले धब्बे ऐसे लगते थे मानो किसी बालक की ड्राइंग-पुस्तिका के सफेद पृष्ठ पर लाल स्याही की दावात उलट गई हो.

लूसी के लिये सभी रोये, परन्तु जिसे सबसे अधिक रोना चाहिए था, वह बच्चा तो कुछ जानता ही न था. अत: कहा जा सकता है कि लूसी ने संघर्ष के बाद ही प्राण दे दिए।

आशा करती हूँ कि यह आपकी सहायता करेगा।

कृप्या मुझे ब्रेनलिऐस्ट र्माक करें।

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