कैसे कहूं कि मनुष्यता एकदम हो गई
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कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई। कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में जाने कितनी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता। ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परन्तु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परन्तु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब्न लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को ढाँढ्स दिया है और हिम्मत बँधाई हैं। कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो| मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर सन्देह न करूँ। मनुष्य की बनाई विधियाँ गलत नतीजे तक पहुँच रही हैं तो इन्हें. बदलना होगा। वस्तुतः आए दिन इन्हें बदला ही जा रहा है, लेकिन अबं भी आशा की ज़्योति बुझी नहीं हैं महान् भारतवर्ष को पाने की सम्भावना बनी हुई है, बनी रहेगी। मेरे मन! निराश होने की जरूरत नहीं है। “अकारण” शब्द में समास है –