Hindi, asked by mohammadsarim309, 7 months ago

कैसे कह सकते हैं कि मंदिर में आनेवाले सहृदय और दयालु हुआ करते हैं?​

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Answered by hkdelavadiya
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नालागढ़कीमाजरी स्थित कृष्णापुरी कॉलोनी में संत शिरोमणि गुरु रविदास मंदिर में रविवार को मासिक सत्संग में श्रद्धालुओं की खूब भीड़ जुटी। भजन कीर्तन के साथ शुरु हुए सत्संग में श्रद्धालु भी जमकर झूमे। यहां श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मंदिर कमेटी के चेयरमैन संत सूरजभान ने कहा कि गुरु रविदास जी महाराज बेहद परोपकारी दयालु संत थे। बचपन से ही दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था।

वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी प|ी को अपने घर से अलग कर दिया। रविदास जी पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग झोपड़ी बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे। उन्होंने कहा कि संत रविदास जी ने अपनी वाणी में ऊंच नीच की भावना तथा ईश्वर भक्ति के नाम पर किए जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक करार दिया है। उन्होंने सभी को मिलजुलकर रहने की प्रेरणा दी थी। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।

मंदिर कमेटी के उपप्रधान रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर बलजीत सिंह ने बताया कि मंदिर में हर महीने मासिक सत्संग का आयोजन किया जाता है। आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु सत्संग में हिस्सा लेते हैं। मौके पर बलबीर सिंह, नाथूराम ढींगड़ा, दर्शनलाल, रामकिशन, सुमेरचंद, चिंतो देवी, संतोष कुमार, रवि कुमार रानी ने भी सत्संग में अपनी सेवाएं दी।

Answered by subasnang8
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