किसान आंदोलन उचित है या अनुचित पार निबंध लिखो ?
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Answer:
क्या किसान आंदोलन में किसानों के वास्तविक मुद्दों पर राजनीति भारी पड़ गई है? अगर किसान नेता कृष्णबीर चौधरी की मानें तो यही हो रहा है क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों में कई वही प्रावधान लागू करने की कोशिश की है जो कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार करने की कोशिश कर रही थी। मनमोहन सिंह सरकार-2 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में एपीएमसी मंडियों को खत्म करने की बात की गई थी। किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भी खुले बाजार की मांग करते रहे थे।
ऐसे में आज जब सरकार उन्हीं प्रावधानों को लागू करने की कोशिश कर रही है तो इसका विरोध क्यों हो रहा है? किसान नेता के मुताबिक कृषि सुधारों पर वामपक्ष की राजनीति भारी पड़ती दिख रही है। हालांकि वे यह स्वीकार करते हैं कि अगर कानून बनाने से पहले सभी पक्षों से ज्यादा बातचीत कर ली गई होती, और कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लिखित कानून बना दिया गया होता तो आज के विवाद से बचा जा सकता था।
उचित है।
☞Essay on Kisan andolan in hindi is attached:
Explanation:
➜कृषि क्षेत्र में लाए गए तीन सुधारवादी कानूनों के विरोध में किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। कई दौर की वार्ता के बाद भी अभी तक सहमति नहीं बनी है। किसानों को आशंका है कि इन सुधारों के बहाने सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर फसलों की सरकारी खरीद और वर्तमान मंडी व्यवस्था से पल्ला झाड़कर कृषि बाजार का निजीकरण करना चाहती है।
सरकार का कहना है कि इन तीन सुधारवादी कानूनों से कृषि उपज की बिक्री हेतु एक नई वैकल्पिक व्यवस्था तैयार होगी जो वर्तमान मंडी व एमएसपी व्यवस्था के साथ-साथ चलती रहेगी। इससे फसलों के भंडारण, विपणन, प्रसंस्करण, निर्यात आदि क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा और साथ ही किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
पहले कानून में किसानों को अधिसूचित मंडियों के अलावा भी अपनी उपज को कहीं भी बेचने की छूट प्रदान की गई है। सरकार का दावा है कि इससे किसान मंडियों में होने वाले शोषण से बचेंगे, किसान की फसल के ज्यादा खरीददार होंगे और किसानों को फसलों की अच्छी कीमत मिलेगी।
दूसरा कानून 'अनुबंध कृषि' से संबंधित है जो बुवाई से पहले ही किसान को अपनी फसल तय मानकों और कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा देता है। तीसरा कानून 'आवश्यक वस्तु अधिनियम' में संशोधन से संबंधित है जिससे अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज़ सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थ अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इन वस्तुओं पर कुछ विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा भी अब नहीं लगेगी।
तमाम दावों के बावजूद किसानों की आशंकाओं को दूर करने में सरकार अब तक असफल रही है। किसानों का कहना है कि वर्तमान मंडी और एमएसपी पर फसलों की सरकारी क्रय की व्यवस्था इन सुधारों के कारण किसी भी तरह से कमज़ोर ना पड़े। अभी मंडियों में फसलों की खरीद पर 8.5 प्रतिशत तक टैक्स लगाया जा रहा है परंतु नई व्यवस्था में मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा।