किस ने ब्रिटेन को एक श्रद्धा प्रधान समाज कहा है
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किसी भी समाज में लोग तरह तरह के हिस्सों में बंटे होते हैं. जैसे भारत में समाज, जाति और वर्ण में बंटा है. धर्म के आधार पर बंटा है. अमीर-ग़रीब के बीच की खाई भी है. पश्चिमी देश अक्सर हमारे देश की जाति व्यवस्था को लेकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं.
मगर ख़ुद को तरक़्क़ीपसंद और आज़ाद ख़याल मानने वाले ब्रिटिश समाज में भी भेदभाव खुलकर दिखता है. यहां सामाजिक दर्ज़ा, लोगों का भविष्य तक तय करता है.
यूं तो बीसवीं सदी से ही कहा जाता रहा है कि ब्रिटेन में सामाजिक दर्ज़ों का दौर ख़त्म हुआ. लेकिन असल में ये कभी नहीं ख़त्म हुआ. समाज में किसी की हैसियत उसके लिए बहुत सी राहें खोलती है. तो जिसका दर्ज़ा अच्छा नहीं उसके लिए ज़िंदगी की तमाम मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं.
ब्रिटिश समाजशास्त्री रिचर्ड होगार्ट ने लिखा था कि समाज में वर्गों का भेद कभी ख़त्म नहीं होता. हां, बदलते वक़्त के साथ ये अपने आपको ज़ाहिर करने का तरीक़ा बदल लेता है.
होगार्ट ने ये भी लिखा था कि हर साल इंग्लैंड में लोग सामाजिक दर्ज़े के भेदभाव को दफ़न करने की बात करते हैं. मगर सच्चाई ये है कि ये हमेशा ज़िंदा रहता है. हां, दूसरे देशों के मुक़ाबले ब्रिटेन में जहां पहले खुलकर सामाजिक भेदभाव देखने को मिलता था. वहां, ये अब कुछ हद तक दब-ढंक गया है.